शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

आर्थिक अनियमितताएं, भ्रष्‍टाचार करने में आईएएस अफसर भी अव्‍वल

       कहा जाता है कि आईएएस अधिकारी नियम कायदों से काम करने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन मप्र में आईएएस अधिकारी नियम तोड़कर काम करने की कला में माहिर से हो गये हैं और उन पर किसी जांच एजेंसी का कोई खौफ नहीं है यही वजह है कि मुख्‍य सचिव अ‍वनि वैश्‍य से लेकर पचास से अधिक आईएएस अफसरों के खिलाफ लोकायुक्‍त एवं आर्थिक अपराध अन्‍वेषण ब्‍यूरो में प्रकरण दर्ज है पर किसी पर भी कार्यवाही होना तो दूर जांच तक समय पर नहीं हो पाती है। आलम यह है कि आईएएस अधिकारी सेवानिव़त्‍त हो जाते हैं, तब भी उनके खिलाफ मामले चलते रहते हैं, लेकिन मजाल है कि उनका बाल भी बाका हो जाये। इसकी एक बड़ी वजह मप्र में राजनीति का बंजर होना है। यहां के राजनेता न तो विषयों की समझ रखते हैं और न ही नियम प्रक्रिया से काम करने की कला जानते हैं जिसके चलते जो आईएएस अफसर कह देते हैं उसी राह पर चल पड़ते हैं यही वजह है कि सत्‍ता में आने के बाद राजनेता पूरी तरह से नौकरशाहों के हाथ के खिलौना बन जाते हैं। 
मप्र का विकास और अफसरों का भ्रष्‍टाचार :
      दु:खद पहलू यह है कि मप्र अपनी स्‍थापना के 50 साल से अधिक के सफर के बाद आज भी पिछड़ेपन के कलंक से बाहर नहीं निकल पाया है। राज्‍य में न तो रोजगार का कोई साधन विकसित हो पाये हैं और न ही उद्योगों का जाल फैल पाया है। गांव-गांव में विकास की बड़ी बातें की जाती है, लेकिन तब भी ग्रामीण क्षेत्र आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। देश में जहां प्रति हजार पर 2007 में 25 लोगों को नौकरियां मिल रही थी वहीं मप्र में 2010 में केवल 19 लोगों को ही अवसर मिल पाये हैं। सामाजिक संरचना का आलम यह है कि मप्र में आज भी शिशु म़त्‍युदर सबसे अधिक है। इसके बाद भी लाडली बचाव और बेटी बचाओ अभियान तो चल रहा है, लेकिन मप्र में जनसंख्‍या प्रति दशक में 20 फीसदी से अधिक की रफ्तार से बढ़ रही है। राज्‍य में 43 फीसदी लोग खेती से जुड़े हैं, लेकिन तब भी किसानों की आत्‍महत्‍या और पालन का सिलसिला थम नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में नौकरशाह क्‍या कर रहे हैं यह आसानी से समझा जा सकता है। 
कौन करें आईएएस अफसरों पर कार्यवाही :
       मप्र में नौकरशाहों को लेकर हर साल कोई न कोई मामला उनकी गड़बडि़यों के उजागर हो रहे हैं। हाल ही में आईएएस अधिकारी राघवचंद्रा जमीन घोटाले में तो फंसे हैं, लेकिन सुप्रीमकोर्ट के बार-बार कहने के बाद भी राज्‍य सरकार चालान पेश नहीं कर पा रही है अब कोर्ट ने सख्‍त आदेश दिये हैं कि कार्यवाही करें अन्‍यथा सीएस पर अवमानना की कार्यवाही होगी। इसके बाद सरकार की नींद खुली है वही दूसरी ओर 23 फरवरी को विधानसभा में मुख्‍यमंत्री ने स्‍वीकार किया है कि लोकायुक्‍त में 45 आईएएस अफसरों के खिलाफ मामले दर्ज हैं। आईएएस अ‍फसर अरूण पांडे के खिलाफ 2005 से जांच चल रही है, जबकि पूर्व आईएएस अधिकारी एम0एस0भिलाला के खिलाफ तो 2004 से जांच चल रही है और अब वे सेवानिव़त्‍त हो गये हैं इसी प्रकार एक अन्‍य पूर्व आईएएस अधिकारी एम0ए0खान के खिलाफ तो 2009 से जांच चल रही है, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात हैं। यही आलम एमपीएसआईडीसी के तत्‍कालीन प्रबंध संचालक अजय आचार्य के खिलाफ 2004 में प्रकरण दर्ज हुआ था और इस मामले में चालान 2010 में पेश हो पाया है। इससे साफ जाहिर है कि मामले किस प्रकार से आईएएस अधिकारियों के दबाये जाते हैं। राज्‍य सरकार हमेशा आईएएस अफसरों के मामलों में चालान पेश करने में आना-कानी करती रही है। जिन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति नहीं दी जा रही है उनमें अ‍वनि वैश्‍य, जीपी सिंघल, एसके मिश्रा, आरएस जुलानिया, एमके वार्ष्‍णेय, निकुंज श्रीवास्‍तव, मनीष श्रीवास्‍तव, अरूण पांडेय, एमएस भिलाला, शशिकर्णावत, सभाजीत यादव, राजेश राजौरा, अंजू सिंह बघेल, राजकुमार पाठक, केपी राही, निशांत बरबड़े, सुखवीर सिंह, सलीना सिंह, अजात शत्रु, आकाश त्रिपाठी, अरविंद जोशी, एमके सिंह, नवनीत कुठारी, अरूण कुमार भट्ट, पंकज राग, बीएन सिंह, विवेक अग्रवाल, सीबी सिंह, राकेश श्रीवास्‍तव, राघव चंद्रा, रश्मि, एमएम उपाध्‍याय, मनोहर अगनानी, एसआर मोहंती, मनोज झलानी, एमए खान, राजकुमार माथौर, अजय आचार्य, पी0 नरहरि, पी0 राघवन आदि शामिल हैं। इससे साफ जाहिर है कि सरकार इन अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की स्‍वीक़ति नहीं देती है। इससे राज्‍य सरकार का दोहरापन भी उजागर हो रहा है। वहीं आईएएस अधिकारी अपने हिसाब से मनमर्जी करने पर उतारू होते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

EXCILENT BLOG