गुरुवार, 31 मई 2012

अलग-अलग युगों की खोजी जा रही है धरोहर

       इतिहास आज भी हमारे लिए दस्‍तावेज है। इस धरोहर की तलाश में हम गांव-गांव और गली-गली भटक रहे हैं। कभी यह धरोहर मूर्तियों, सिक्‍कों, गुफाओं अथवा अन्‍य औंजारों के जरिए हमें हासिल होती हैं। मध्‍यप्रदेश का पुरातत्‍व विभाग एक कदम आगे बढ़कर प्रदेश के हर जिले और ब्‍लाक स्‍तर पर अब पुरातात्विक सर्वे करा रहा है। इस सर्वे के माध्‍यम से सिंधु घाटी सभ्‍यता के दौर के पत्‍थर या औजार हों या आदि-मानव काल के अवशेष तराशे जा रहे हैं, ताकि उस काल की गणना की जा सके। इसके साथ ही अशोक, विक्रमादित्‍य या फिर अंग्रेजों से संघर्ष काल से जुड़े दस्‍तावेजों का भी संरक्षण करने की कोशिश हो रही है। यह काम गांव-गांव में किया जा रहा है, ताकि उन्‍हें भविष्‍य के लिए संरक्षित किया जा सके। इतिहास से जुड़ी धरोहरों की खोज को सभी 50 जिलों में स्‍थानीय स्‍तर पर फैली धरोहर को सर्वे के माध्‍यम से खोजा जा रहा है। 
          मध्‍यप्रदेश ऐतिहासिक स्‍थलों की धरोहर के लिए जाना पहचाना जाता है। यहां पर कई गुफाएं खोजी गई हैं और उन गुफाओं का महत्‍व तलाशकर पर्यटक स्‍थल के रूप में विकसित भी किया गया है। यह सच है कि राज्‍य में इस दिशा जितना ध्‍यान दिया जाना चाहिए था, उतना ध्‍यान नहीं दिया गया है जिसके चलते हम अपनी धरोहर का संरक्षण उस तरह से नहीं कर सकें हैं जिस तरह किया जाना चाहिए, लेकिन अब पुरातत्‍व विभाग नये सिरे से धरोहर के सर्वे के काम में जुटा है, जो अपने आप में एक सराहनीय कदम है।

बुधवार, 30 मई 2012

एक प्रेमी और दो प्रेमिकाएं बंधे शादी के बंधन में

'' दूल्‍हा एक और दुल्‍हन दो : यह करिश्‍मा मप्र के अलीराजपुर में आदिवासी युवक ने कर डाला''
      अमूमन हिन्‍दू परंपरा में एक युवक एक युवती से शादी कर सकता है, लेकिन आदिवासियों की परंपराएं इससे भी एक कदम आगे बढ़कर हैं, जहां पर दो बीबियों से शादी करना कोई गुनाह नहीं है। आदिवासी अंचल अलीराजपुर जिले के उदयगढ़ गांव में एक दिलचस्‍प शादी हुई। इस गांव के नौजवान आदिवासी जालम सिंह मुझाल्‍दा ने अलग-अलग दो युवतियों से अपना प्रेम प्रसंग चलाया और बाद में दोनों से शादी के बंधन में भी बंधा। पूरे देश में लिव एन रिलेशनशिप पर विवाद मचा हुआ है पर आदिवासी युवक ने तो वह काम कर डाला जो कि हरियाणा और पंजाब में भी नहीं हो पा रहा है। इस आदिवासी युवक की शादी की स्क्रिप्‍ट बड़ी दिलचस्‍प है। जालम सिंह ने सबसे पहले अपने गांव की मनीषा से बेइतंहा मोहब्‍बत हुई, गांव में चर्चा का विषय बनी, जब परिवार में शादी से इंकार कर दिया तो आदिवासी युवक जालम सिंह मनीषा को लेकर भाग गया। थोड़े दिन बाद घर वालों ने उसे स्‍वीकार कर लिया। शादी के बिना ही वह दो बच्‍चों का बाप बन गया। इसी बीच जालम सिंह को पड़ौसी गांव भोरकुंडिया गांव की युवती प्रर्मिला से मोहब्‍बत हो गई। बार-बार प्रर्मिला उसे शादी के लिए जोर डालती थी, तो उसे समझ में नहीं आता था कि क्‍या करें, तो एक दिन जालम सिंह ने अपनी पुरानी कहानी दोहराई और प्रर्मिला को लेकर भाग गया। इसके बाद विगत एक साल से मनीषा और प्रर्मिला को एक साथ जालम सिंह अपने घर में रखे हुए था। इस दौरान प्रर्मिला भी एक बच्‍चे की मां बन गई। जब लड़की के मां-बाप ने शादी का प्रस्‍ताव रखा तो जालम सिंह और उसके परिवार के लोग आसानी से मान गये और फिर आदिवासी परंपरा के अनुसार विवाह हुआ। इस मौके पर समाज और परिवार के रिश्‍तेदारों ने जमकर खुशियां मनाई, नाचे, गाये और शराब भी पी। इस शादी को लेकर इन दिनों आदिवासी अंचल में खूब चर्चा का विषय बनी हुई है। आदिवासी युवक अपनी दोनों पत्‍िनयों साथ न सिर्फ खुश है, बल्कि उसका परिवार भी इस खुशी में सहभागी है।      

मंगलवार, 29 मई 2012

फिर जीत लिया आसमान बेटियों ने

 
       बेटियां हर क्षेत्र में अव्‍वल हैं। वे जहां चाह रही है वहां राह खुल रही है। आसमान पर अपने अरमानों का झण्‍डा बुलंद कर रही हैं उनकी राह में बाधाएं हैं, लेकिन फिर भी उनके इरादे बुलंद है जिसके चलते मंजिल उन्‍हें मिल भी रही है। समाज बार-बार नमन भी कर रहा है। एक बार फिर बेटियों ने सीबीएसई एवं माध्‍यमिक शिक्षा मंडल के कक्षा 12वीं के परीक्षा परिणामों ने एक बार फिर धूम मचा दी है। हर विषय में छात्राएं अव्‍वल रही हैं। यहां तक कि सीबीएसई में तो सातों विषयों में 86.21 प्रतिशत लड़किया कामयाब रही हैं। इस बार सबसे ज्‍यादा मैरिट में गणित विषय में छात्राओं ने बाजी मारी है। सीबीएसई में भोपाल में पढ़ने वाली छात्रा वर्षा वर्मन ने 97.2 प्रतिशत अंक पाकर अव्‍वल रही हैं। यह छात्रा सेंट जोसेफ को-एट की कॉमर्स संकाय में हैं। निश्चित रूप से ब‍ेटियों के इरादे बुलंद हुए हैं और उन्‍होंने बुलंदियां छू ली हैं। वर्षा वर्मन अपनी खुशी का इजहार करती हुई क‍हती है कि वे लॉ की पढ़ाई करना चाहती हैं। फिलहाल भविष्‍य में सपने तो खूद देखें है अब कितने पूरे होते हैं यह तो वक्‍त ही बतायेगा। इसी प्रकार ऑल इंडिया में 17वां रैंक हासिल करने वाली राधिका यादव का भी इरादा वकालत करने का है और वे लॉ की डिग्री लेना चाहती हैं। राधिका ने कहा कि वे रोजाना 8 घंटे स्‍टडी करती हैं। इस बार माध्‍यमिक शिक्षा मंडल के हायर सेकेण्‍ड्री रिजेल्‍ट में टॉपर बच्‍चा गोपाल धाकड़ रहा है, जो कि नीमच जिले के जाबद के खेतिहार मजदूर का बेटा है। बोर्ड के परीक्षा परिणामों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि गांव-कस्‍बों ने बड़े शहरों को पीछे छोड़ दिया है। इसी प्रकार कॉमन लॉ एडमीशन टेस्‍ट में छतरपुर की प्रतिभा राजे परिमार ने देश में प्रथम रेंक हासिल की है। यह बच्‍ची छतरपुर में रहकर पढाई कर रही है। निश्चित रूप से बच्चियां कमाल कर रही है और अपनी पढ़ाई में लड़कों को भी पीछे छोड़ती चली जा रही हैं और उनके अपने इरादों और सपनों को साकार करने में जुटी है।  

राई नृत्‍य के बदल रहे हैं अर्थ मध्‍यप्रदेश में

''राई नृत्‍य में मशगूल महिलाएं''
        मध्‍यप्रदेश का अति पिछड़ा इलाका बुंदेलखंड राई नृत्‍य में अपनी पहचान अंतर्राष्‍ट्रीय और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर बना चुका है। कई बड़े समारोह में आज भी राई नृत्‍य के आयोजन गरिमा के साथ हो रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे राई नृत्‍य के अर्थ बदलने लगे हैं, जो नई उम्र की नृत्‍यांगनाएं राई के क्षेत्र में आ रही है, वे नृत्‍य के साथ-साथ नवधनाढय को आकर्षित करने के लिए कोई भी कदम आगे बढ़ा देती हैं। इसके चलते राई नृत्‍य धीरे-धीरे जिस्‍म फरोशी का माध्‍यम भी बनता जा रहा है, जो कि संस्‍कृति और परंपरा के लिए शर्मसार है। मप्र के सागर जिले में सबसे ज्‍यादा राई नृत्‍य की नृत्‍यांगनाएं अपने कौशल का प्रदर्शन कर रही हैं। इस जिले में पथरिया, हबला, लुहारी, फतेहपुर, राहतगढ़, चौकी, कोरासा, मनेशिया, लिधोरा सहित आदि गांवों में राई की नृत्‍यांगनाएं निवास करती हैं। यह नृत्‍यांगनाएं लंबे समय से राई नृत्‍य में डूबी हुई हैं। बेडि़या समाज की महिलाएं आज भी रूढि़वादी परंपराओं में जकड़ी हुई है, जो कि आज भी अपना जीवनयापन का आधार और पुश्‍तैनी व्‍यवसाय राई नृत्‍य मानती हैं निश्चित रूप से राई नृत्‍य की पहचान कई स्‍तरों पर है, लेकिन धीरे-धीरे इस नृत्‍य में कुछ ऐसे कीटाणू प्रवेश कर गये हैं जिसकी वजह से राई नृत्‍य को भी व्‍यवसाय की तरह देखा जाने लगा है। राई नृत्‍य बुंदेलखंड की शान है, लेकिन सरकार ने कभी भी इस नृत्‍य के बढ़ावा पर ध्‍यान नहीं दिया, बल्कि जो परंपरा है उसी को विकसित होने दिया। आज भी सरकारी और गैर सरकारी आयोजनों में शान के साथ राई नृत्‍य कराया जाता है। जब बुंदेलखंड की युवतियां राई नृत्‍य करती है, तो एक अलग ही शमा बंध जाता है।

सोमवार, 28 मई 2012

सीमाएं हैं असुरक्षित मध्‍यप्रदेश में, अब गश्‍त और चैंकिंग पाइंट होंगे

         लंबे समय से मप्र की सीमाएं असुरक्षित होने के संकेत मिलते रहे हैं। राज्‍य में जिस तरह से संगठित अपराधों के तरीके नये-नये इजात किये जाने लगे हैं उससे यह आभास होने लगा है कि कही न कही अन्‍य राज्‍यों से अपराधियों ने अपनी आमद देनी शुरू कर दी है। राज्‍य में आतंकवादी गतिविधियों का बढ़ना और सिमी के नेटवर्क में इजाफा होने से साफ जाहिर है कि कही न कही दाल में काला है। भविष्‍य की चुनौतियों से निपटने के लिए मप्र के पुलिस महानिदेशक नंदन दुबे की पहल पर तीन राज्‍य के पुलिस महानिदेशक की बैठक कर उन मसलों पर चर्चा की जो राज्‍य की सीमाओं पर जब तब विवाद होते हैं। 
     मध्‍यप्रदेश यूं तो पांच राज्‍यों की सीमाएं से जुड़ा हुआ है जिसमें राजस्‍थान, गुजरात, उ0प्र0, छत्‍तीसगढ़ और महाराष्‍ट्र शामिल हैं। इसमें सबसे ज्‍यादा आवाजाही राजस्‍थान, गुजरात  और महाराष्‍ट्र से होती है। इन राज्‍यों की सीमाओं पर मदक पदार्थों की तस्‍करी, संगठित अपराध और मवेशियों की तस्‍करी के साथ-साथ सिमी के नेटवर्क का जाल भी फैल रहा है। इसकी भनक राज्‍य की पुलिस को है। यही वजह है कि डीजीपी ने पहल करके पुलिस महानिदेशक की बैठक बुलाई और उसमें सीमावर्ती इलाकों में संयुक्‍त गश्‍त और चैकिंग पाइंट लगाने पर सहमति बन गई है। यह जरूर है कि महाराष्‍ट्र और यूपी से अधिकारी नहीं आ पाये। मप्र की सीमाओं को सुरक्षित रखने के लिए राज्‍य सरकार को बेहद गंभीर रहने की जरूरत है, क्‍योंकि सीमाएं आये दिन माहौल खराब कर रही हैं। सिमी का नेटवर्क मप्र के साथ-साथ गुजरात और राजस्‍थान में भी अच्‍छा खासा है। मप्र की पुलिस ने राज्‍य में सिमी के नेटवर्क को ध्‍वस्‍त किया है, लेकिन फिर भी सिमी ने चेहरा बदलकर अपना मूवमेंट बढ़ाया है जिसकी भनक राज्‍य की पुलिस को है। इस बैठक में नबालिग और आदिवासी लड़कियों की तस्‍करी का मामला भी उठा था। निश्चित रूप से मप्र के प‍ुलिस महानिदेशक नंदन दुबे ने एक सार्थक पहल करके राज्‍य की सीमाओं को फिर से चाक-चौबंद करने की पहल की है, जो कि एक सराहनीय कदम माना जायेगा। इस दिशा में लगातार प्रयास करने की जरूरत है। 
                               '' जय हो मप्र की''

रविवार, 27 मई 2012

सिंधिया ने गरमाई मध्‍यप्रदेश की कांग्रेस राजनीति

''अभी तो मंजिल पर नजर''
         यूं तो केंद्रीय वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया अभी तक मप्र की राजनीति में अधिक दिलचस्‍पी नहीं ले रहे थे, उनका राजनीतिक लक्ष्‍य ग्‍वालियर, चंबल संभाग तक सीमित था, लेकिन पिछले चार-पांच महीनों में अचानक सिंधिया ने प्रदेश की राजनीति में अपने कदम बढ़ाएं हैं। ऐसा नहीं है कि वे इससे पहले सक्रिय नहीं थे, लेकिन उनकी यात्राओं ने राजनीति में भूचाल ला दिया है और उनके एक बयान ने तो कांग्रेस शिविर में हल-चल ही मचा दी है। वे लगातार कह रहे हैं कि मप्र कांग्रेस के अध्‍यक्ष भूरिया ही कांग्रेस का चेहरा है और अगर कोई आदिवासी मुख्‍यमंत्री बनता है, तो यह मप्र के लिए गौरव की बात होगी। सिंधिया के इस बयान से दि‍ग्विजय सिंह खेमा खफा हुआ है। विशेषकर दिग्विजय समर्थक नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की राह में कहीं न कहीं यह बयान बाधा बनकर खड़ा हो गया है। दिलचस्‍प यह है कि इस बयान पर पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह ने संतुलित टिप्‍पणी करके यह कह दिया है कि मुख्‍यमंत्री का चयन तो विधायक करेंगे। इसके बाद भी सिंधिया लगातार भूरिया को ही मुख्‍यमंत्री पद का दावेदार बता रहे हैं। सिंधिया ने थोड़े समय में ही 40 जिलों के दौरे कर लिये हैं और वे लगातार अपने दौरों के जरिए कांग्रेस को मजबूत करने का काम भी कर रहे हैं। इन दिनों मप्र में एक नया ध्रुवीकरण पैदा हो रहा है जिसकी बागडोर सिंधिया के हाथों में धीरे-धीरे आ रही है जिसमें सत्‍यव्रत चतुर्वेदी, सुरेश पचौरी, अरूण यादव शामिल हैं। सिंधिया की राजनीति गतिविधियों से मप्र की राजनीति में अच्‍छी खासी हलचल पैदा हो गई है। सिंधिया 25 मई को राजधानी में थे, उन्‍होंने फिर से मुख्‍यमंत्री पद के लिए भूरिया को ही बेहतर उम्‍मीदार बताया। इससे साफ जाहिर है कि भविष्‍य में सिंधिया भूरिया पर ही दांव खेलेंगे।
''मोबाइल पर बात करते हुए ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया''

बेटियों की तस्‍करी मध्‍यप्रदेश में


        जहां एक ओर मध्‍यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान बेटी बचाओ अभियान चलाये हुए हैं। इसके प्रचार अभियान पर करोड़ों रूपया खर्च हो रहा है। वहीं शर्मनाक स्थिति यह है कि मप्र के कई जिलों से बेटियों की तस्‍करी हो रही है और पुलिस मूकदर्शक बनी बैठी है। मानव तस्‍करी का एक गिरोह कई हिस्‍सों में विभिन्‍न रूपों में सक्रिय है, जो कि बेटियों को निशाना बना रहे हैं। विशेषकर आदिवासी अंचलों से बेटियों के गायब होने की सबसे अधिक सूचनाएं सामने आ रही हैं। राजधानी से सटे आदिवासी बाहुल्‍य जिले बैतूल में तो पिछले पांच सालों में 1560 बालिग और नाबालिग लड़कियां लापता हुई हैं। इसके बाद भी डिंडोरी, अनूपपुर, शहडोल जिलों से भी लड़कियों के गायब होने की सूचनाएं हैं। 
बांछड़ा समुदाय में सबसे अधिक खरीद-फरोख्‍त :
         मध्‍यप्रदेश में परंपरा की आड़ में चल रहे बांछड़ा समुदाय के देह व्‍यापार डेरों में भी मानव तस्‍करी के जरिए अबोध बालिकाओं की खरीद फरोख्‍त का भी सिलसिला चल रहा है। बांछड़ा जाति नीमच, रतलाम, मंदसौर के इलाकों में फैली हुई है। वर्ष 2011 में तो एक गिरोह पकड़ा गया था, जिसमें से 06-07 बालिकाओं को वैश्‍यावृत्ति करने से मुक्ति किया गया था। राज्‍य में युवतियों के गायब होने के मामले वर्ष 2000 से बढ़ते ही जा रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्‍यूरो के रिकार्ड देखें तो चौंकाने वाली तस्‍वीर सामने आ रही हैं जिसमें हर साल लड़किया गायब हो रही हैं अथवा उन्‍हें वैश्‍यावृत्ति के लिए प्रेरित किया जा रहा है। वर्ष 2010 में खरीद-फरोख्‍त के 07 मामले दर्ज हुए जिसमें इंदौर में 02, रीवा, पन्‍ना, दतिया, गुना और टीकमगढ़ में 01-01 मामला था। वर्ष 2009 युवतियों के खरीद-फरोख्‍त के 09 मामले सामने आये जिसमें ग्‍वालियर और हरदा में 02-02 और मुरैना में 03 एवं जबलपुर, डिंडोरी में 01-01 मामला सामने आये। प्रदेश में सबसे ज्‍यादा खरीद-फरोख्‍त के मामले नीमच और मंदसौर से आ रहे हैं। यहां से लड़कियों को महानगरों में बेचा जा रहा है, तो कुछ लड़कियों को तो अरब देशों में बेचा गया है। सामान्‍यत: बालिकाओं के अपहरण, खरीद-फरोख्‍त, दलाली और मानव तस्‍करी के यह मामले समय-समय पर उजागर होते रहते हैं इसके बाद भी पुलिस का कोई ध्‍यान इस ओर नहीं है। बैतूल जिले में लड़कियों की गुमशुदगी के मामले चौंकाने वाले हैं। पिछले पांच सालों में इस जिले से लड़किया अचानक गायब हो रही है। पहले लड़कियां 50 से 60 हजार रूपये में खरीद कर शादी कर ली जाती थी और फिर उन्‍ासे देह व्‍यापार करवाया जाता था। इसमें सबसे ज्‍यादा बालिक और नाबालिक लड़कियों को देह व्‍यापार में उतारा जा रहा है। इस जिले के एसपी ललित शाक्‍यवार का कहना है कि मानव तस्‍करी रोकने के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं। इन मामलों को लेकर पुलिस अधिकारी और सरकार गंभीर नहीं है। यही वजह है कि पुलिस ऐसे गिरोह पर नजर तक नहीं डाल पाती है और मानव तस्‍करी करने वाला गिरोह अपनी दुनिया में मस्‍त रहता है।

शनिवार, 26 मई 2012

आग बरसा रहा है सूरज, राहत के लिए हुए लोग बैचेन मध्‍यप्रदेश में

हाय गर्मी, कैसे बचे

कुछ पल गर्मी से राहत का आनंद लिया जाये
इन दिनों मध्‍यप्रदेश का मौसम बदला-बदला है। सूरज का क्रोध आग उगल रहा है। हर तरफ गर्मी कहर बनकर बरप रही है, लोग राहत के लिए बैचेन हैं। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी गर्मी ने सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं। दिन में सड़के सुनसान हो जाती है, जो लोग सड़कों पर दौड़ते नजर आते हैं, वे भी मजबूरी में सिर से पांव तक कपड़ों में ढके होते हैं। सूरज की इस तल्‍खी ने लोगों की दिनचर्या बदलकर रख दी है। मौसम विभाग बार-बार कह रहा है कि फिलहाल तो राहत की कोई उम्‍मीद नहीं है, लेकिन आधुनिक ज्‍योतिषों का आकलन है कि इस बार नौ-तपे में बारिश होगी। फिलहाल तो गर्मी की तपन तम-तमा रही है। गर्मी से राहत के लिए लोगों ने अलग-अलग अपने इंतजाम किये हुए हैं। मप्र के बुरहानपुर जिले में तो तापमान ने छलांग लगाते हुए 46 डिग्री पर कर गया। जबकि भोपाल का तापमान 43.9 डिग्री रहा है। मौसम के निदेशक डॉ0 डीपी दुबे का मानना है कि 22 मई 1947 को तापमान 45.6 दर्ज किया गया था, जबकि इसी तारीख में वर्ष 2011 में भोपाल का तापमान 41.1 डिग्री सेल्सियस आका गया था, जबकि वर्ष 2010 में तो तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। मौसम का चक्र यूं ही चलता रहता है। कभी तापमान बढ़ता है, तो कभी तापमान घटता है। 
सूरज की तपन से सड़कें हुई सुनसान
          तम-तमाई गर्मी ने लोगों को परेशान किया हुआ है। प्रदेश के कई हिस्‍सों में दिनभर सड़के सुनसान रहती हैं। लगातार ऊपर चढ़ते पारे और आसमान से बरसती आग सामान्‍य जनजीवन को प्रभावित किया है। इसके चलते बाजार का व्‍यवसाय तो प्रभावित हुआ ही है पर साथ ही साथ सड़कों पर जो लोग निकलते हैं उन्‍हें कई प्रकार की सावधानियों के साथ निकलना पड़ रहा है। अब तो घर और दफ्तरों में चल रहे कूलर और एसी भी गर्म हवाएं फैंकने लगे हैं। यही हाल रात्रि में भी बना रहता है। देर रात्रि तक गर्म हवाओं का सिलसिला चलता रहता है। मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार एक जून को बारिश दस्‍तक दे देगी। गर्मी की तपन से सबसे ज्‍यादा प्रभाव युवतियों को हो रहा है, जो कि अपने आपको बचाने के लिए पूरी तरह से कपड़ा ढक कर सड़क पर निकल रही हैं। वहीं राज्‍य के हर हिस्‍से में तालाब और झीलों में अचानक चहल-पहल बढ़ गई है। मौसम की इस बदली फिजा ने पूरी तरह से मप्र को अपनी बाहों में जकड़ लिया है।
भोपाल की झील में गर्मी से राहत के लिए वोटिंग का इंतजार
कहीं तो राहत नसीब हो






शुक्रवार, 25 मई 2012

रसोई घर में दफन पति की लाश पर कल्‍युगी पत्‍नी सैंक रही थी रोटियां

          क्‍या कोई विश्‍वास करेगा कि जिस जीवनसंघनी के साथ सात फेरे लेकर जीवन-मरने की कसम खाई थी, उसी पत्‍नी ने अपने पति को प्रेमी की खातिर न सिर्फ घर के किचिन में जहर देकर पहले मारा और वहीं पर ही दफन कर डाला। हद तो तब हो गई जब इस कल्‍युगी पत्‍नी ने दो दिनों तक लगातार दफन पति की लाश पर गैस रखकर रोटियां भी सैंकी। भला हो आस-पड़ौस का कि उन्‍होंने रहस्‍य पर से पर्दा हटाया और पुलिस ने पत्‍नी को अंतत: पकड़ ही लिया। यह घटना क्रम मप्र के विदिशा जिले के गंजबासौदा से 10 किमी दूर ग्राम जरौद का है। ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली घटना है कि प्रेमी की खातिर पत्‍नी ने पति को मार डाला। राज्‍य में ऐसी घटनाएं हर महीने हो रही हैं। इसके पीछे पत्‍नी का प्रेमी के प्रति गहरा लगाव और आर्थिक संकट एक बड़ा कारण सामने आ रहा है। 
महिला के विभिन्‍न रूप : 
       वर्षों से कहा जा रहा है कि महिलाओं को समझना मुश्किल है। कलयुग में भी महिलाएं अपना चरित्र दिखाने में पीछे नहीं हैं। अभी हाल ही में भोपाल शहर में पत्‍नी ने प्रेमी के साथ मिलकर पति की सिर कुचल कर निर्मम हत्‍या कर दी थी। ऐसी घटनाएं नित-प्रति सामने आती है, लेकिन अगर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी घटनाओं का खुलासा होने लगे तो फिर पूरी पारिवारिक व्‍यवस्‍था ध्‍वस्‍त होने की कगार पर पहुंचने के संकेत मिलते हैं। कोई 200-300 आबादी वाले गांव जरौद में मीना बाई दांगी अपने पति के साथ जीवनभर साथ निभाने का वादा करके विवाह सूत्र में बंधी थी और इस अटूट बंधन का ही परिणाम था कि दो बच्‍चों की मां बनी, बस बाप का कसूर यह था कि वह परिवार को चलाने के लिए चाय की दुकान चलाकर घर परिवार का गुजर-बसर कर रहा था पर उसे क्‍या पता था कि उसकी पत्‍नी उसके साथ न सिर्फ बेईमानी कर रही है, बल्कि परिवार को ही तहस-नहस करने पर तुली हुई है। पहले पत्‍नी ने अपने बड़े बेटे को प्रेमी के साथ देखने पर रहस्‍यमय ढंग से मार डाला और जब यह बात पति को पता चली तो मीना ने उसे भी जहर देकर अपने पति मुन्‍ना लाल दांगी को घर में ही किचिन में दफना दिया। यह महिला न तो डरी और न ही सहमी, बल्कि उसने अपने पति की लाश को दफनाने के बाद घर में इस तरह से लीपा-पोती कर दी थी कि किसी को एहसास नहीं हुआ कि घर में अपने पति को ही दफना दिया। इसके बाद भी उसके छोटे भाई और पुत्र को अपने पिता के गायब होने का संदेह हुआ, दोनों पुलिस चौकी पहुंचे और इन्‍होंने मां और भाभी पर गायब होने का संदेह जाहिर किया। पुलिस आई और पत्‍नी मीना बाई से पूछताछ शुरू हुई। पूछताछ के दौरान ही उसने स्‍वीकार कर लिया कि उसने पति को मार डाला है। इसके बाद तो गांव-गांव में हलचल मच गई। हर आदमी कल्‍युगी पत्‍नी को देखने के लिए उमड़ पड़ा। दुर्भाग्‍य पूर्ण स्थिति यह है कि इस कल्‍युगी पत्‍नी ने दो दिनों तक अपने पति की लाश पर रोटियां भी सैंकी। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसका पति के प्रति किस कदर नराजगी थी और प्रेमी के प्रति किस कदर लगाव था। प्रेम की खातिर पूरा परिवार उजड़ गया। 

गुरुवार, 24 मई 2012

जिद और जुनून ने बनाई राह आसान, सिमाला बनी आईपीएस

    जिद और जुनून अगर किसी भी लक्ष्‍य के लिए कर लिया जाये, तो फिर उसे पाना कोई बड़ी कठिन राह नहीं होती है। यही रास्‍ता सिमाला प्रसाद ने भी चुना। रात-दिन की मेहनत और लगातार किताबों की जिंदगी में डूबे रहने से अंतत: आईपीएस बन ही गई। यह मध्‍यप्रदेश के लिए गौरव की बात है कि इस सरजमी की बच्‍ची ने अपने दम-खम पर आईपीएस पाई है। सिमाला ने आईपीएस की राह तक पहुंचने के लिए किसी भी कोचिंग संस्‍थान का सहारा नहीं लिया, बल्कि सेल्‍फ स्‍टडी को सफलता की सीढ़ी माना। भोपाल के बरकतउल्‍ला यूनिवर्सिटी से उन्‍हें सोशियोलॉजी में पीजी के दौरान गोल्‍ड मैडल भी मिला था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जोसफ कोएड स्‍कूल ईदगाह हिल्‍स में हुई उसके बाद स्‍टूडेंट फॉर एक्‍सीलेंस से बीकॉम एवं बीयू से पीजी करने के बाद पुलिस अधिकारी बनने का सपना देखा और इसकी शुरूआत पीएससी की परीक्षा से की। संयोग देखिए कि पहली परीक्षा में ही पीएससी में सिलेक्‍ट हो गई और उनकी पहली नियुक्ति डीएसपी के रूप में हुई। सिमाला को सबसे पहले रतलाम में सीएसपी बनाया गया। यहां पर बड़े अफसरों ने उनकी घोर उपेक्षा की तथा कई बार अपमानित किया। इससे दुखी होकर सिमाला ने एक दिन तय किया कि वे अब आईपीएस बनेगी। रात-दिन नौकरी करते हुए अपनी शिक्षा-दीक्षा को बढ़ाते हुए सिमाला ने सिविल सर्विसेस की तैयारी शुरू की और वर्ष 2011 में उनका आईपीएस में चयन हो गया और अब वे हैदराबाद स्थित इंडियन पुलिस सर्विस अकादमी में ट्रेनिंग ले रही है। सिमाला के माता-पिता भोपाल में हैं। मां जानी-मानी लेखिका पदमश्री मेहरूनिशा परवेज है, तो पिता पूर्व आईएएस अधिकारी भागीरथ प्रसाद हैं। सिमाला की कामयाबी का राज उनके माता-पिता नहीं बल्कि उनकी अपनी शिक्षा-दीक्षा के प्रति जुनून और जज्‍वा है। हर आईएएस पिता की इच्‍छा होती है कि उसका पुत्र भी आईएएस बने, लेकिन ऐसा होता नहीं है फिर भी पूर्व आईएएस भागीरथ प्रसाद की बेटी सिमाला प्रसाद ने वह करिश्‍मा कर दिखाया है, जो कम ही बच्चियां कर पाती है। 
                                   ''जय हो मप्र की''

86 साल बाद मप्र की 23 लोकभाषाओं का सर्वे

हर हाल में परंपरा को बनाये रखने की जिद कायम
        लोकभाषाओं का अस्तित्‍व लगातार समाप्‍त हो रहा है। मप्र में तो लोकभाषाएं अंतिम सांसे गिन रही है। अंग्रेजी और हिन्‍दी ने इन लोकभाषाओं को मटिया-मेट करने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ी है। इसके बाद भी लोकभाषाओं को बचाने के लिए कई स्‍तरों पर काम हो रहा है। राज्‍य में आदिवासी लोक कला परिषद ने प्रदेश की विभिन्‍न आदिवासियों की भाषा, रहन-सहन, गीत, कथाओं और जीवन शैली पर काम किया है। यहां तक कि राज्‍य की लोकभाषाओं के गीतों का बॉलीबुड में भी उपयोग हुआ है। अब 86 साल बाद लोकभाषाओं को सहेजने और उनके विकास के लिए केंद्र सरकार की पहल पर गुजरात की भाषा शोध एवं प्रकाशन संस्‍थान बड़ोदा ने लोकभाषाओं को बचाने का अभियान छेड़ा है। इसके तहत मध्‍यप्रदेश की 23 भाषा और बोलियों का सर्वेक्षण किया जा चुका है तथा वर्तमान में एक दर्जन भाषाओं के सर्वे पर काम किया जा रहा है। इसके पीछे का मकसद यह है कि लोग भाषाओं में बच्‍चों को उन्‍हीं की भाषा में प्राइमरी स्‍तर पर पढ़ाई कराना है। 
हमें कोई देख न ले
          लोकभाषाओं के सर्वे के दौरान आदिवासियों के गीत, कथाएं, जीवन शैली, रंगों, संबंधों, जगह-स्‍थान तथा समय के साथ-साथ इतिहास, भूगोल को ध्‍यान में रखकर भाषाओं के अस्तित्‍व की सच्‍चाई का पता लगाया जा रहा है। मध्‍यप्रदेश में यह काम 50 लोगों की टीम कर रही है। अभी तक इस टीम ने 23 भाषाओं का सर्वे पूरा कर लिया है। जिन भाषाओं का सर्वे पूरा हो गया है उनमें बघेली, भिलाली, गौंड़ी, जादौ, माटी, बंजारी, भदावरी, भीली, ब्रज, बुंदेली, मालवी, नहाल, निमाड़ी, पंचमहली, पवारी, रजपूती, सहरयायी, सिकरवारी, कछवाहघारी, तोरधारी, जटवारी, कोरवी, कोरकू, लोधधारी जैसी भाषाओं का सर्वे पूरा हो चुका है, जबकि हलवी, कोल, खेरा, वेगानी, कंजर, मवासी, वडडर, पाली, लोधी के सर्वेक्षण का काम शुरू किया जा रहा है। दिलचस्‍प यह है कि लंबे समय बाद मप्र की लोकभाषाओं के सर्वे का कार्य हो रहा है। राज्‍य में भी कई स्‍तरों पर बोलियों को लेकर कार्य हुए हैं, लेकिन जिस तरह से सर्वे अब हो रहा है वैसा काम अभी तक नहीं हुआ है।

बुधवार, 23 मई 2012

गांव-गांव में पानी की मारा-मारी और अब सरकार बनायेगी मप्र में जल निगम


       भले ही गांव-गांव में एक-एक बूंद पानी के लिए ग्रामीणजनों को 2 से 5 किलोमीटर दूर तक भटकना पड़ रहा है फिर भी पानी नसीब नहीं हो रहा है। यह तस्‍वीर मप्र की कई हिस्‍सों में बनी हुई है, जहां पर ग्रामीण क्षेत्रों में पानी का संकट लगातार गहरा रहा है। गर्मी के मौसम में तो ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं लंबी दूरी का सफर करने के बाद पानी ला पाती हैं। पानी के स्‍थाई स्‍त्रोत सूख रहे हैं और जो व्‍यवस्‍था पीएचई विभाग ने तैयार की है वह फ्लॉप साबित हुई है। 
अब मप्र की भाजपा सरकार ने 22 मई को मंत्रि परिषद की बैठक में ग्रामीण क्षेत्रों में नये पेयजल स्‍त्रोत तलाशने, पेयजल सप्‍लाई और नल-जल योजना चलाने के लिए मप्र जल निगम गठित करने का फैसला लिया है। यह निगम लोक स्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी विभाग के अधीन काम करेगा। यूं तो मप्र में कोई तीन दर्जन से अधिक कार्पोरेशन काम कर रहे है जिसमें से अच्‍छे काम करने वाली की संख्‍या बमुश्किल आधा दर्जन भी नहीं है। ऐसी स्थिति में एक नये निगम का गठन करने का क्‍या मतलब है यह समझ से परे है। 

          मप्र में वर्ष 1993 से 2002 के बीच कांग्रेस सरकार ने पंचायतीराज के चलते ग्रामीण क्षेत्र की पेयजल व्‍यवस्‍था लोक स्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी विभाग से लेकर पंचायत विभाग को सौंप दी थी। तब से अब तक यही व्‍यवस्‍था कायम है। इसके चलते गांव-गांव में पीएचई का आधार-भूत ढांचा पूरी तरह से खत्‍म हो गया है और नलजल योजनाएं पंचायत के हवाले हैं। वर्तमान में केंद्र सरकार का मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्‍यक्ति को हर दिन  40 लीटर पानी मिलना चाहिए, लेकिन दस लीटर पानी भी लोगों को नसीब नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्‍थायी पानी के स्‍त्रोत कुएं, बाबड़ी, झील एवं नदियां सूख रही है इनकी तरफ किसी का ध्‍यान नहीं है। वहीं प्रदेश में 4,77,162 हैण्‍डपंप स्‍थापित है जिसमें से 17,564 हैण्‍डपंप बंद पड़े हैं। इनमें से अधिकतर हैण्‍डपंप ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। वैसे तो ग्रामीण नलजल योजना काम कर रही है, लेकिन इसके परिणाम कोई खास नहीं मिले हैं। इससे साफ जाहिर है कि नये निगम के गठन से ग्रामीण क्षेत्र की समस्‍या हल होने वाली नहीं है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली एजेंसियों में एक और कार्पोरेशन शामिल हो जायेगा। 
                              ''जय हो मप्र की'' 

मंगलवार, 22 मई 2012

कांग्रेस की राजनीति में मील का पत्‍थर साबित होगी जनचेतना यात्रा

लो मैं आ गया : अब बताओं सरकार कैसे परेशान कर रही है।
           राजनीति  की धारा में बहना हर किसी राजनेता के बस की बात नहीं होती है। कदम-कदम पर षड़यंत्र और पर्दे के पीछे फ्लॉप करने की रणनीति हर राजनेता को तोड़ती है । इसके बाद भी राजनेताओं का जज्‍वां ही कहा जायेगा कि वह अपनी धारा को प्रवाहमान बनाने के लिए निकल पड़ते हैं। फिर न उन्‍हें अपने विरोधियों की चिंता सताती है और न ही षड़यंत्रों की परवाह होती है। उनका मकसद सिर्फ जनता के बीच जाकर अपनी बात कहना है। इन्‍हीं राह पर इन दिनों मध्‍यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह 'राहुल' चल रहे हैं। उनकी जनचेतना यात्रा का एक पड़ाव बुंदेलखंड में पूरा हो गया है। यह यात्रा 135 घंटों में 1430 किमी चली है जिसमें बुंदेलखंड का चप्‍पा-चप्‍पा जाना और समझा है। इस दौरान सिंह को बेहाल किसान मिले, उनकी पीड़ाएं पता लगी, दर-दर भटक रहा किसान अपनी व्‍यथा बताने से नहीं रूके इसके साथ ही योजनाओं में चल रहे भ्रष्‍टाचार के प्रमाण भी मिले। यात्रा के दौरान सिंह ने भाजपा सरकार के खिलाफ जमकर जनता की सभा में ललकारा भी। उन्‍होंने न सिर्फ मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर तीखे प्रहार किये, बल्कि सरकार की कलई भी खोली। जनचेतना यात्रा के 9 दिनों में बुंदेलखंड की 21 विधानसभा सीटों में 250 सभाएं ली इस यात्रा का समापन 19 मई, 2012 को बीना में हुआ। इस मौके पर सिंह ने खुलासा किया कि उन्‍होंने नवंबर 2011 में यह तय कर लिया था कि वे यात्रा पर जायेंगे और जनता को सरकार की कार-गुजारियों से अवगत करायेंगे। इसके पीछे का तर्क यह है कि जब उन्‍होंने अविश्‍वास प्रस्‍ताव विधानसभा में प्रस्‍तुत किया था तब सरकार ने उनके आरोपों पर कोई सार्थक जबाव नहीं दिया था, तब सिंह ने मान लिया था कि यह सरकार कोई भी तर्क-कुतर्क कर सकती है, लेकिन सार्थक जबाव नहीं दे सकती है और इसका सही माध्‍यम जनता ही है। इस यात्रा से कांग्रेस को नई ऊर्जा मिली है और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने का अवसर भी मिला। 
इतिहास बना रहे हैं : 
''हर व्‍यक्ति का दर्द मेरा दर्द है''
      यूं तो नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के बारे में आमधारणा  है कि वे सुख सुविधाओं की राजनीति करते हैं और चैम्‍बर से बाहर निकलने में उन्‍हें पीड़ाएं होती है पर इस मिथक को सिंह ने वर्ष 2012 मई महीने में तोड़ ही दिया। जब पूरा प्रदेश गर्मी की तपन से परेशान है तब तपती धूप में सिंह अपनी यात्रा पर निकल पड़े हैं न उन्‍हें धूप परेशान कर रही है और न ही एसी की जरूरत है, बल्कि  उमड़ते जनता का प्‍यार चाहिए अपनी यात्रा का दूसरा पड़ाव भी 23 मई से फिर नीमच से शुरू करेंगे, जो कि 25 मई को जाबरा में समाप्‍त होगा। इस यात्रा से नेता प्रतिपक्ष का राजनैतिक ग्राफ निश्चित रूप से बढ़ा है और वे कांग्रेस की राजनीति में एक चमकते सितारे बनकर उभर रहे हैं। निश्चित रूप से जनचेतना यात्रा मप्र की कांग्रेस राजनीति में मील का पत्‍थर साबित होगी। यात्रा के पहले पड़ाव में बुंदेलखंड पैकेज का मामला उन्‍होंने जोर-शोर से उठाया और इस बात को प्रमाणित करने का प्रयास किया कि बुंदेलखंड पैकेज की राशि भ्रष्‍टाचार की भेंट चढ़ गया। केंद्र सरकार ने चार हजार करोड़ की राशि बुंदेलखंड पैकेज के रूप में दी थी, लेकिन यह राशि भ्रष्‍टाचार की भेंट चढ़ गई और पूरे बुंदेलखंड में मंत्रियों के नाते-रिश्‍तेदार ठेकेदार बन गये हैं। यह सच है कि बुंदेलखंड से कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी का खासा प्रेम है और श्री गांधी बार-बार उन इलाकों में पहुंच भी रहे हैं। जनचेतना यात्रा फिलहाल कुछ दिनों के लिए रूक सकती है, लेकिन यह यात्रा आगामी विधानसभा चुनाव तक चलती रहेगी। ऐसा संकल्‍प नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ले चुके हैं फिर भले ही कितनी ही बाधाएं आये, लेकिन वे रूकेंगे नहीं।