सोमवार, 23 जुलाई 2012

नहीं टूटती परंपराएं........

       भले ही हम ग्‍लोबल युग में जी रहे हैं। आज हर क्षेत्र में मार्केटिंग का दौर चल रहा है। ऐसी स्थिति में परंपराएं और संस्‍कार बरकरार रहे, तो लगता है कि अभी भी हमारी परंपराएं टूट नहीं रही हैं। इन परंपराओं को भी व्‍यवसायिक नजरिये से देखा जाने लगा है, लेकिन फिर भी उनका जीवित रहना अपने आपमें शुभ संकेत है। भारतीय समाज में उत्‍सव मानने की कोई न कोई तिथि अथवा महीना कैलेंडर में मौजूद है। उसके हिसाब से कभी महिलाएं अपने तीज-त्‍यौंहार में डूब जाती है, तो फिर पूरा परिवार उनके पीछे उत्‍सव की डुबकियां लगाता है। यूं तो मप्र में विभिन्‍न धाराओं में बहने वाली संस्‍कृति का जीवंत उदाहरण है, इस राज्‍य में देश के हर हिस्‍से के तीज-त्‍यौंहार मानने का चलन है। इस राज्‍य के गठन से ही देश के विभिन्‍न हिस्‍सों से लोगों ने अपना रैन बसेरा बना लिया था, जो कि अब स्‍थाई हो गया है। ऐसी स्थि‍ति में तीज-त्‍यौंहार मानने का सिलसिला थमता नहीं है। इन दिनों सावन का महीना है, बारिश की फुंहारे अपना रंग दिखा रही है। धीरे-धीरे झमाझम बारिश्‍ा हो रही है। सावन का महीना महिलाओं के लिए खुशियों का पिटारा खोल देता है। महिलाओं की टोलियां हरियाली तीज, मेंहदी, झूलों में डूबकर मानती हैं। राज्‍य के हर हिस्‍से में हरियाली तीज का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व की ख‍ासियत है कि महिलाएं आपस में मिलकर एक-दूसरे को बधाईयां देती हैं और सावन की फुंहारों के बीच खुशियों में डूब जाती हैं। उस पर सावन का झूला अपने आप में खुशियों में और इजाफा कर देता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा और भी तेजी से बढ़ रही है। कई इलाकों में सावन के मेले लगते हैं और उन पर लोगों की भागीदारी यह बताती है कि किस तरह से उत्‍सवों में अपनी मौजूदगी दर्ज की जाये। 
अकाल की आहट : 
      निर्धारित बारिश एक माह बाद भी नहीं होने से मप्र में अकाल की आहट सुनाई देने लगी है। जून और जुलाई माह में बारिश नहीं हुई है जिसके चलते खरीफ की फसल बुरी तरह से प्रभावित होती नजर आ रही है। किसान के चेहरों पर हवाईयां उड़ रही है, भविष्‍य चौपट होते दिख रहा है। मप्र में भी नौकरशाह बारिश नहीं होने से परेशान है। उन्‍हें लग रहा है कि अगर बारिश समय पर नहीं हुई  तो हालात और बिगड़ सकते हैं। यूं भी मप्र में पिछले चार-पांच सालों से बारिश की आंख-मिचौली होती रही है। मौसम विभाग भी मप्र में बारिश को लेकर कोई ठोस आकलन नहीं कर पा रहा है। कृषि विभाग से तो कोई उम्‍मीद की ही नहीं जा सकती है। वैसे 22 जुलाई की रात्रि में कई इलाकों में बरखा की बहार आई। मौसम विभाग का मानना है कि 24 घंटे में भारी बारिश्‍ा हो सकती है। 
राजनैतिक मौसम गर्म : 
        इन दिनों मप्र का राजनैतिक मौसम गर्म हैं। कांग्रेस के दो विधायक चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी और डॉ0 कल्‍पना परूलेकर की बर्खास्‍तगी ने कांग्रेस और भाजपा में भूचाल ला दिया है। कांग्रेस के तेवर शुरूआती दौर में तो आक्रमक थे पर चतुर्वेदी और परूलेकर द्वारा मांफी मांगने के बाद मामला एकदम पलट गया है। इन दो विधायकों की बर्खास्‍तगी विधानसभा से हुई है और अब उसकी भरभाई के लिए सत्‍तारूढ़ दल भाजपा ने बातचीत का रास्‍ता अपनाया है, लेकिन इससे कोई राह निकलने की उम्‍मीद कम है। दूसरी ओर कांग्रेस ने एक जो बड़ा गोल भाजपा की तरफ फेंका था, उसमें वे नाकाम होती नजर आ रही है। 
महिलाओं के कपड़े और मंत्री का नजरियां : 
      मप्र की भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को महिलाओं के कम कपड़े पहनने पर भारी तकलीफ है। यही वजह है कि उनके मन की पीड़ा बाहर आ गई और उन्‍होंने फरमा दिया कि कुछ महिलाओं के कपड़े बेहद आपत्तिजनक हैं। महिलाओं को ऐसे कपड़े पहनना चाहिए, जिससे लोगों के मन में उनके प्रति श्रृद्वा जगे। इस बयान से भाजपा शिविर के साथ-साथ कांग्रेस शिविर में भी हलचल मच गई है। महिलाओं के कपड़ों को लेकर पहली बार बहस नहीं छिड़ी है इससे पहले भी समय-समय पर बहस होती रही है। कई राजनेता महिलाओं के कपड़ों पर नराजगी जाहिर करते रहे हैं। 

सोमवार, 9 जुलाई 2012

विकास में अब गुजरात के बाद मप्र की भी चर्चा होने लगी

       विकास के मामले में मध्‍यप्रदेश एक कदम आगे तो बढ़ा है, जो बीमारू राज्‍य के रूप में जाना जाता था, उसकी चर्चा अब विकास को लेकर होने लगी है। भले ही विकास की रफ्तार धीमी है, लेकिन विकास की तरफ रूख तो किया है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है। इसके साथ ही अब इस विकास पर केंद्र सरकार के मंत्रियों ने तो प्रशंसा के गीत समय-समय पर गाये हैं। यहां तक कि योजना आयोग के उपाध्‍यक्ष मोंटेक सिंह भी मप्र के विकास से संतुष्‍ट हैं। फिलहाल मप्र को प्रतिव्‍यक्ति आय वृद्वि में जोर लगाना है इस दिशा में और प्रयास की जरूरत है। मप्र के विकास कार्यों की प्रशंसा में अब राष्‍ट्रपति चुनाव के उम्‍मीदवार पीए संगमा का नाम भी जुड़ गया है। संगमा ने 08 जुलाई को अपनी भोपाल यात्रा के दौरान मप्र के सीएम शिवराज सिंह चौहान के कामकाज की जमकर तारीफ की। उन्‍होंने यहां तक कहा कि प्रदेश का सौभाग्‍य है कि उन्‍हें शिवराज सिंह चौहान जैसा मुख्‍यमंत्री मिला है। गुड गवर्नेन्‍स और विकास कार्यों के बारे में अब गुजरात के साथ मप्र का उदाहरण भी देश में दिया जाने लगा है। श्री संगमा दस साल बाद भोपाल आये थे और भोपाल विमानतल से लेकर भाजपा कार्यालय तक के सफर में उन्‍हें भोपाल क सौंदर्यता ने तो मोहित किया ही है साथ ही साथ विकास से भी प्रभावित हुए। वे कहते हैं कि प्रदेश की विकास दर 10 प्रतिशत से ज्‍यादा है और वह बीमारू राज्‍य से बाहर निकल गया है। पहले लोग कहते थे कि जो आज बंगाल सोचता है वह कल पूरा देश करेंगा, लेकिन अब लोग कहेंगे कि ''जो आज मप्र करता है वह कल पूरा देश करेंगा'' यह सच है कि संगमा ने भविष्‍य की ओर संकेत दिया है। मप्र जिस रफ्तार से विकास की दौड़ में चल रहा है और नई-नई योजनाओं में अपने प्रयास में लगा है उसमें निश्चित रूप से राज्‍य का भविष्‍य सुनहरा तो नजर आता है पर इसके साथ ही नेतृत्‍व करने वाले नेताओं को जरूर विकास की ललक दिल और दिमाग में पैदा करनी पड़ेगी, तभी मप्र देश के फलक पर चमकेगा। आज भी मप्र की रोशनी से कई राज्‍य चमक रहे हैं और यहां की योजनाएं उन राज्‍यों में लागू की जा रही हैं। भविष्‍य में देशभर में भी मप्र चमके तो कोई आश्‍चर्य नहीं होगा।

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

सुषमा स्‍वराज के संसदीय क्षेत्र से आमिर के समर्थन में महिला सरपंचों ने शराब के खिलाफ मोर्चा संभाला


         यूं तो मप्र में शराब के खिलाफ महिलाएं मैदान में मोर्चा लंबे समय से संभाल रही हैं, लेकिन आज भी शराब को लेकर कोई बड़ा आंदोलन राज्‍य में खड़ा नहीं हो पाया है। महिला सरपंच अपने-अपने स्‍तर पर शराब बंदी के पक्ष में म‍ुहिम चलाती रहती हैं। पिछले सप्‍ताह आमिर खान के रियल्‍टी शो ''सत्‍यमेव जयते'' में शराब के खिलाफ पूरा कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम का असर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्‍वराज के संसदीय क्षेत्र विदिशा में नजर आया। यहां की महिला सरपंचों ने एकजुट होकर विदिशा कलेक्‍टर कार्यालय के समक्ष उपस्थित होकर गांव-गांव में बिक रही शराब के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और ज्ञापन भी सौंपा। इन महिला जनप्रतिनिधियों का कहना है कि शराब की वजह से गांव-गांव में सामाजिक वातावरण तार-तार हो रहा है, उसमें प्रदूषण फैल रहा है, परिवार टूटकर बिखर रहे हैं, घर परिवार की सम्‍पत्तियां बिक रही हैं, खेत-खलियान दांव पर लग गये हैं, फिर भी गांव के लोगों के लिए शराब अमृत बन गई है। इसके खिलाफ पंचायतीराज में एक छोटी से भूमिका अदा करने वाली महिला सरपंच ने आवाज उठाई है। इन सरपंचों का कहना है कि उन्‍हें शराब बंदी का अधिकार दिया जाये। यह अधिकारी हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में मिला हुआ है। वर्ष 2004 से लेकर वर्ष 2003 तक
''आमिर खान, शो का असर मप्र में भी हुआ''
पंचायराज के तहत पूरी गांव की महिलाओं को अधिकार था कि अगर वह दो तिहाई से अधिक हस्‍ताक्षर करके दे, दें तो शराब की दुकान बंद हो जायेगी। इसका कई स्‍तरों पर विरोध हुआ और अंतत: इस आदेश का कोई पालन नहीं हुआ। बहती शराब ने कई गांव की खुशहाली को बर्बादी में बदल दिया है। विदिशा जिले की 09 महिला सरपंचों ने लिखित में कलेक्‍टर को शिकायत की है और जल्‍द से जल्‍द कार्यवाही का अनुरोध किया है। इससे पहले सतना जिले में महिलाओं ने एक नया प्रयोग किया है, जिसके तहत जो पुरूष गांव में शराब पीता पाया जायेगा, उस पर जुर्माना लगेगा। इसका भी असर हुआ है। अब विदिशा जिले की महिलाओं ने शराब के खिलाफ आवाज उठाई है। इन महिला सरपंचों का कहना है कि बढ़ती शराब खोरी से गांव की परंपराएं और संस्‍कृति प्रभावित हो रही है। मांग पूरी होने तक यह आंदोलन जारी रहेगा। दिलचस्‍प यह है कि विदिशा संसदीय क्षेत्र की सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्‍वराज के इलाके से महिलाओं ने शराब के खिलाफ आवाज बुलंद की है। अब देखना यह है कि श्रीमती स्‍वराज मप्र की
''महिलाओं की चिंता तो करूंगी सुषमा स्‍वराज''
अपनी ही सरकार से शराब बंदी के लिए क्‍या पहल करती हैं। वैसे तो महिला प्रतिनिधियों को आंदोलन करने की जरूरत ही महसूस नहीं होना चाहिए था, क्‍योंकि उनके इलाके का नेतृत्‍व तेज-तर्राट भाजपा नेत्री सुषमा स्‍वराज कर रही हैं। कुल मिलाकर मप्र में शराब बंदी के खिलाफ पांच-छह साल में एकाधबार कहीं न कहीं से महिला आवाज बुलंद कर देती हैं। वर्ष 2000-01 में कांग्रेस सरकार के तत्‍कालीन उप मुख्‍यमंत्री सुभाष यादव ने भी शराब बंदी के खिलाफ अभियान छेड़ा था, मगर बाद में वे भी टाय-टाय फिस्‍स हो गये। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वर्ष 2010 से लगातार एलान कर रहे हैं कि उनके कार्यकाल में एक भी नई शराब की दुकान नहीं खोली जायेगी, जो दुकाने खुली है उन्‍हीं से व्‍यवसाय होगा। यह भी सच है कि शराब का कारोबार लगातार फलफूल रहा है। महिलाओं का आंदोलन एक नई किरण है।

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

फिल्‍म सिटी के नाम पर छलिएं भटक रहे हैं मध्‍यप्रदेश में

      मध्‍यप्रदेश प्राकृतिक संपदाओं के लिए जाना जाता है और इसकी प्राकृतिक संपदा का सबसे ज्‍यादा दोहन ठेकेदारों ने किया है, न तो राज्‍य एक कदम आगे बढ़ पाया है और न ही विकास के सौपान पर नयी राह पर चल पा रहा है। मध्‍यप्रदेश को बने हुए पांच दशक से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन सपनों के सौदागरों से आज भी राज्‍य के रहवासी छले जा रहे हैं। पिछले आठ सालों से संस्‍कृति विभाग राज्‍य में फिल्‍म सिटी खोलने के सपने दिखा रहा है, जमीन की तलाश में सालों गुजर गये अब रायसेन जिले में जमीन चिन्हित की गई है, लेकिन इससे पहले ही बॉलीबुड के छलिए राज्‍य के छप्‍पे-छप्‍पे में फैल गये हैं और वे सरकार को कोई कर का भुगतान किये बिना, अपनी फिल्‍मी की शूटिंग करके लाखों-करोड़ों कमा रहे हैं, पर मध्‍यप्रदेश को क्‍या मिल रहा है, इसका जबाव किसी के पास नहीं है। मध्‍यप्रदेश की प्राकृतिक खूबसूरती को कैमरों में कैद करके फिल्‍मों में दिखाया जा रहा है इसके साथ ही पुराता‍त्विक और ऐतिहासिक धरोहर को भी कैमरे में फिल्‍मों के जरिए कैद कर लिया है। निश्चित रूप से यह राज्‍य के लिए शुभ संकेत है कि एक नया व्‍यवसाय मिलने के संकेत मिलने लगे हैं पर राज्‍य सरकार को इस संबंध में गंभीरता से विचार कर सारी नीति निर्धारण करनी चाहिए, क्‍योंकि बॉलीबुड के कलाकार तो छलिया बाबू के नाम से जाने जाते हैं उनका मतलब निकल गया, तो फिर वह पहचानते नहीं। अभी तो उनके लिए मप्र हर स्‍तर पर एक बेहतर प्‍लेटफॉर्म साबित हो रहा है, क्‍योंकि यहां पर शूटिंग के लिए जो लोकेशन मिल रही है, उसका उन्‍हें पैमेंट नहीं देना पड़ रहा है, सब कुछ फ्री में हो रहा है। बॉलीबुड के निर्माता निर्देशकों को मप्र में भोपाल, रायसेन, पचमढ़ी, खजुराहो, ग्‍वालियर आदि स्‍थानों फ्री में मिल रहे हैं। इस बारे में संस्‍कृति विभाग को अब नींद से जाग जाना चाहिए। पिछले दो-तीन सालों में फिल्‍मे बनाने वालों की बाढ़ आ गई है। इसका श्रेय जाने माने निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा को जाता है। झा ने दो फिल्‍म भोपाल में शूट की और दोनों हिट रही। एक राजनीति और दूसरी आरक्षण। इन फिल्‍मों ने देशभर में धूम मचाई, विवाद खड़े हुए पर मप्र को क्‍या मिला । इस पर राज्‍य सरकार को विचार करना चाहिए। अब जुलाई के महीने में बॉलीबुड अभिनेता सुनील शेट्टी ने भोपाल मे ढेरा जमाया है, उनकी फिल्‍म 'मेरे दोस्‍त अभी पिक्‍चर बाकी है' के प्रमोशन के लिए भोपाल में हैं, उनके साथ अभिनेत्री उदिता गोस्‍वामी, साहवर अली खान एवं राकेश बेदी भी आये हैं। निश्चित रूप से कलाकारों का मप्र में बारबार आना शुभ संकेत है। इससे राज्‍य का मान सम्‍मान बढ़ा है, लेकिन ऐसी योजना बनाई जाये जिसमें राज्‍य का तो सम्‍मान बढ़े ही साथ ही साथ आय के स्रोत भी खुले और प्रदेश की प्रतिभा को विकसित करने का मौका मिले, तभी हम अपना हक पा सकेंगे। 
                                   ''जय हो मप्र की''

बुधवार, 4 जुलाई 2012

दागी और नकारा ब्‍यूरोकैट्स फिर निशाने पर

          यूं तो नौकरशाहों की कार्यशैली पर उंगलिया जब तब उठती रही है। केंद्र सरकार ने अब उन नकारा अफसरों को घर बैठाने का मानस बना लिया है, जो कि किसी भी प्रकार के कामकाज करने की जरूरत तक महसूस नहीं करते। बेलगाम नौकरशाहों पर आसानी से उन्‍हें कोई बांध नहीं पाता है, पर जब-जब अफसरों की कार्यप्रणाली का आंकलन होता है, तो फिर वे दंडवत होने में देरी भी नहीं करते हैं। मप्र में नौकरशाहों की कार्यशैली पर खूब सवाल उठते हैं। उनके भ्रष्‍टाचार की कहानियां अखबारों की सुर्खिया बनती रहती है, आयकर के छापों में बंगलों से करोड़ों रूपये मिलते हैं, सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग करने में उनका कोई शान ही नहीं, लेकिन फिर भी आम आदमी को आंखे दिखाना उनकी फितरत में हैं। वर्ष 2011 दिसंबर महीने में केंद्र सरकार ने अक्षम और नकारा नौकरशाहों की छुट्टी करने के लिए एक परिपत्र राज्‍य सरकार को भेजा था कि वे बताये कि उनके राज्‍य में कितने अफसर नकारा है। इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई और न ही केंद्र को रिपोर्ट भेजी गई। अब फिर से केंद्र सरकार ने एक जुलाई को फिर राज्‍यों को याद दिलाया है कि वे अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के कामकाज की समीक्षा करें और जो नकारा एवं अक्षम हैं उन्‍हें सेवानिवृत्‍त किया जाये। कम से कम 15 साल की सेवा करने वाले अधिकारियों की समीक्षा करने के निर्देश दिये हैं। इस आदेश के चलते अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों में हड़कंप मच गया है और वह अपने अपने हिसाब से रास्‍ते तलाश रहे हैं। मध्‍यप्रदेश के नौकरशाहों पर भ्रष्‍टाचार के प्रकरण लोकायुक्‍त एवं आर्थिक अपराध अन्‍वेषण ब्‍यूरो में चल ही रहे हैं इसके साथ ही एक दर्जन से अधिक अफसरों की गोपनीय चरित्रावली भी गड़बड़ है। इन अफसरों ने राष्‍ट्रपति तक दस्‍तक दी हुई है। सीआर खराब होने के चलते अधिकारियों को अब प्रमोशन में काफी दिक्‍कतें आती हैं। जिन अफसरों ने अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा पर दाग लगाया है उनमें जोशी दम्‍पत्ति मुख्‍य हैं। आईएएस दंपत्ति अरविंद जोशी एवं टीनू जोशी के यहां से आयकर विभाग को छापों में करोड़ों रूपये मिले थे। इन अफसरों को बर्खास्‍त करने की राज्‍य सरकार सिफारिश कर चुकी है। इसके साथ ही करीब एक दर्जन से अधिक और अधिक नौकरशाहों पर भी ऐसे सवाल खड़े हुए हैं जिनके खिलाफ विभिन्‍न आरोप एवं प्रत्‍यारोप जहां तहां दर्ज हैं। आईपीएस अफसर अपनी सम्‍पत्ति का ब्‍यौरा देने में अक्‍सर कन्‍नी काटते हैं। मप्र के 23 आईपीएस अफसरों ने अपनी अचल चल सम्‍पत्ति का ब्‍यौरा केंद्र को नहीं भेजा है। कुल मिलाकर एक बार फिर अखिल भारतीय प्रशा‍सनिक सेवा के अधिकारियों के कामकाज को लेकर सवाल चर्चा में आ गये हैं। इन पर बहस होना चाहिए, ताकि लोगों को मालूम पड़े कि आखिरकार अखिल भारतीय सेवा के अफसर मोटी-मोटी रकम और सेवाओं का तो भरपूर आनंद उठाते हैं, लेकिन उसके एबज में विकास की दिशा में क्‍या कर हैं इसकी पड़ताल तो होनी ही चाहिए। 
अफसर और उनकी संख्‍या : 
  •    आईएएस अफसर - 5,000
  •     आईपीएस अफसर - 3,300
  •    आईएफएस अफसर - 2,100 
अफसरों का नजरिया : 
  • जो अफसर काम नहीं करते हैं उन पर कार्यवाही होना चाहिए। - महेशचंद्र चौधरी, कलेक्‍टर छिंदवाड़ा।
  • अधिकारियों के कर्त्‍तव्‍यों और अधिकारों की समीक्षा तो होना चाहिए। - गुलशन बामरा, कलेक्‍टर जबलपुर।
  • हरसाल हमारे लक्ष्‍यों की समीक्षा होती है यह कोई नई बात नहीं है। - डॉ0 नवनीत कोठारी, कलेक्‍टर, खरगौन। 
  • अधिकारियों की सेवाओं का हर साल मूल्‍याकंन होता है। - अरूणा मोहन राव, एडीजी, भोपाल।
  • अधिकारियों के हर पहलू पर ध्‍यान रखा जाना चाहिए। - संतोष कुमार सिंह, एसपी, जबलपुर।