गुरुवार, 13 जून 2013

पटरी पर लाई जा रही स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं

         मध्‍यप्रदेश की स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं आईसीयू में पहुंच गई हैं, न तो अस्‍पतालों में समय पर चिकित्‍सक मिलते हैं और न ही मरीजों को इलाज मिल पा रहा है। दवाईयों के लिए मरीजों को दर-दर भटकना पड़ रहा है, तब जाकर राहत मिलती है यानि राज्‍य की स्‍वास्‍थ्‍य व्‍यवस्‍था एकदम चरमरा गई है। इस व्‍यवस्‍था में सुधार करने के लिए विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्‍ण ने अब एक वीड़ा उठाया है। उन्‍होंने अपने डेढ़-दो साल के कार्यकाल में सबसे पहले तो मंत्रालय में बैठक अस्‍पतालों का आकलन किया और फिर उनकी मॉनिटरिंग शुरू की। इसके बाद उन्‍होंने अब जमीनी तस्‍वीर से रूबरू होने का अभियान छेड़ दिया है। पिछले महीने वे ग्‍वालियर चंबल अंचल में थे, जहां उन्‍होंने सरकार अस्‍पतालों का आकस्मिक निरीक्षक किया, तो ढेरो अव्‍यवस्‍थाएं मिली। जिसके चलते उन्‍होंने करीब एक दर्जन से अधिक चिकित्‍सकों को निलंबित कर दिया था। ढेरो कर्मचारियों पर कार्यवाही की गाज गिरी है। अब उनकी निगाह भोपाल के अस्‍पतालों पर पड़ी है। वे 12 जून को सबसे पहले जेपी अस्‍पताल में पहुंचे और वहां के हालात देखकर गुस्‍से से आग-बबूला हो गये। विभाग के प्रमुख सचिव कृष्‍ण ने जमकर चिकित्‍सकों को खरी-खोटी सुनाई, वे न सिर्फ 1250 अस्‍पताल पहुंचे, बल्कि उन्‍होंने काटजू अस्‍पताल और कोलार अस्‍पताला का भी आकस्मिक निरीक्षण किया। वे उस समय आश्‍चर्यचकित हो गये, जब उन्‍हें पता चला कि अस्‍पताल में बिजली गुल होने पर टार्च की रोशन में ऑपरेशन किये जाते हैं। इस पर उन्‍होंने अस्‍पताल प्रबंधन को जमकर फटकार लगाई। उन्‍होंने कहा कि अगर अस्‍पताल में टार्च की रोशन में ऑपरेशन होते हैं तो इससे विभाग की छवि धूमिल होती है। जब वे ऑपरेशन थियेटर में पहुंचे तो छत से पानी टपक रहा था। इस पर भी वे खफा हुए। कुर्सियों पर से डॉक्‍टर नदारद थे। उन्‍होंने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि प्रदेश में स्‍वास्‍थ्‍य का बजट 5 हजार करोड़ है। इसमें से ढाई हजार करोड़ रूपये डॉक्‍टरों और कर्मचारियों के वेतन पर खर्च हो जाता है। इसके बाद भी डॉक्‍टर शासन के आदेशों की बार-बार अवहेलना कर रहे हैं अब यह बर्दाश्‍त नहीं किया जायेगा। डॉक्‍टरों को ईमानदारी से काम करना चाहिए, अन्‍यथा उन्‍हें नौकरी छोड़ देना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि पांच हजार करोड़ खर्च कर हम माताओं और बच्‍चों को मरता नहीं देख सकते। जब वे कोलार अस्‍पताल पहुंचे, तो उसकी स्थिति देखकर उन्‍होंने कहा कि यहां तो एक मिनिट रूकना भी शर्मनाक है। इससे घटिया अस्‍पताल कोई नहीं हो सकता है। 30 जुलाई तक इस अस्‍पताल की शक्‍ल बदली जाये। जब वे मिसरौद पहुंचे तो वहां अस्‍पताल में मात्र छह मरीज भर्ती थे और डॉक्‍टर नदारद थे। इस पर उन्‍होंने मेडीकल ऑफीसर और 18 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया। इसके साथ ही एनआरएचएम मिशन के डॉक्‍टर एम गीता भी काटजू अस्‍पताल पहुंची और वहां की व्‍यवस्‍थाएं देखकर खूब नाराज हुई। उन्‍हें तब आश्‍चर्य हुआ, जब छोटे से कुकर में दाल पक रही थी। लेबर रूम में टूटी-फूटी टेबिले रखी थी। उन्‍होंने जब अस्‍पताल का किचिन देखा तो हैरान हो गई और उन्‍होंने खाना पकाने वाली एजेंसी का ठेका निरस्‍त कर दिया।
           निश्‍चित रूप से विभाग के प्रमुख सचिव प्रवीर कृष्‍ण बधाई के हकदार हैं कि वे कम से कम सरकारी अस्‍पतालों की वास्‍तविकता से रूबरू हो रहे हैं, क्‍योंकि गरीबों के लिए अब यही मात्र सहारा रह गया है और उन्‍हें वहां भी सुविधाएं नहीं मिल रही है, क्‍योंकि गरीब आदमी को महंगे-महंगे नर्सिंगहोम में इलाज कराने की स्थिति नहीं है, वे तो आज भी सरकारी अस्‍पतालों पर निर्भर हैं और वहां भी सुविधाएं खत्‍म सी हो गई हैं। कम से कम प्रवीर कृष्‍ण गरीबों के हित में एक बड़ी मुहिम छेड़े हुए हैं यह विभाग के लिए एक शुभ संकेत है। 
                                          ''मप्र की जय हो''

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