रविवार, 19 मई 2013

राजनेताओं का विश्‍वास इसलिए टूटकर बिखर रहा है.....

  1. भाजपा नेता ने ड्राईवर कर्मचारी कर पीट-पीटकर मार डाला। उस पर आरोप था कि उसने डीजल चुराया है। कर्मचारी की मौत हो गई है अब नेता महोदय पुलिस से बचने के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। उन्‍हें एक विधायक संरक्षण दे रहे हैं।
  2. प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कांतिलाल भूरिया उन कांग्रेसी नेताओं पर 18 मई, 2013 को भड़क गये, जो उन्‍हें बदनाम कर रहे हैं। जिस पर उन्‍होंने कहा कि दुकानदार नेताओं को लात मारकर बाहर निकाल दूंगा। अभी भी सुधर जाओ, बरना लात ही लात पड़ेगी। 
  3. मुख्‍यमंत्री महोदय ने कांग्रेसी नेताओं के पत्रों के जवाब नहीं दिये, तो अब दिग्विजय सिंह ने सारे वे पत्र जारी कर दिये, जिनके एक के भी जवाब मुख्‍यमंत्री ने नहीं दिये हैं। सिंह का कहना है कि इसमें अधिकांश पत्र नीतिगत विषय पर थे अथवा क्षेत्र की समस्‍याओं से संबंधित थे। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी आरोप लगा चुके हैं कि सीएम उनके पत्रों के जवाब नहीं देते हैं। आखिरकार सीएम किसके पत्रों के जवाब देते होंगे। 
  4. भाजपा सांसद सुमित्रा महाजन ने स्‍वीकार कर लिया है कि चैरवेति विवाद में उनसे गलतियां हुई हैं, जो कि अब दोहराई नहीं जायेगी। 
            यूं तो अखबारों के साथ-साथ इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में राजनेताओं के चेहरे समय-समय पर उजागर होते रहते हैं पर हम तो चुनिंदा प्रसंगों के साथ नेताओं के चेहरों पर जो कालिख पुत रही है उस पर हम यहां संवाद कर रहे हैं। यह प्रसंग भी संयोग से 19 मई, 2013 के समाचार पत्रों से लिये गये हैं। इससे साफ जाहिर है कि राजनेता न तो सुधरने को तैयार है और न ही कोई परिवर्तन करने की ललक उसमें नजर आती है। वह तो अपनी राजनीति कैसे चमके इस पर ही उसका फोकस हो रहा है। जिसके फलस्‍वरूप राजनेता अपना विश्‍वास समाज में तेजी से खोता जा रहा है। यह तथ्‍य  से राजनेता बाकिफ है फिर भी वे अपनी दुनिया में मस्‍त है। कहीं ऐसा न हो जब सब कुछ उजड़ जाये, तब राजनेता को याद आये। यूं तो मप्र की राजनीति शांत-शांत चित वाली है। यहां न तो घनघोर विरोध करने की प्रवृत्ति नेताओं में है और न ही अपनी राजनीति को चमकाने के लिए अलग-अलग तरीके से हथकंडे अपनाने की कला जानते हैं। बिहार, यूपी की राजनीति के जो तेवर दिखते हैं, वे यहां पर सब गायब है, तो दक्षिण भारत में राजनेता अपने व्‍यवसाय के साथ-साथ राजनीति को भी चमकता है। यहां ये सब नजारे दूर-दूर तक देखने को नहीं मिलते। मध्‍यप्रदेश के राजनेता अगर व्‍यवसाय करते हैं, तो ज्‍यादातर कॉलेज खोल लेते हैं, तो कुछ नेता अपनी पुश्‍तैनी जमीन में विस्‍तार करते रहते हैं, तो किसी को परिवहन व्‍यवसाय रास आ जाता है, तो कोई होटल का धंधा करने लगता है। शहरों में आजकल के राजनेताओं को जमीन का धंधा रास आ रहा है। इसके साथ ही धार्मिक आयोजन करके अपनी राजनीति चमकाने का भी एक माध्‍यम भाजपा के नेताओं ने हाथों में पकड़ लिया है जिस पर चंदे का आरोप खूब लगता है। भाजपा नेताओं को जाने क्‍यों गुरूर्र इस कदर हावी हो गया है कि वे अपने से बड़ा किसी को नहीं समझ रहे हैं। यही वजह है कि 18 मई, 2013 को भाजपा नेता पी0गणेश ने भोपाल में एक वाहन चालक को पीट-पीटकर मार डाला। उसे लाठी-डंडों से इतना पीटा कि वह मरणाशन अवस्‍था पहुंच गया और उसे जेपी अस्‍पताल ले जाया गया, जहां पर डॉक्‍टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। फिलहाल पुलिस ने हत्‍या का मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन अभी तक गिरफ्तारी किसी की नहीं हुई है। यह नेता महोदय पूर्व पार्षद है और एक विधायक महोदय का इन्‍हें संरक्षण मिला हुआ है। इसलिए अभी तक पुलिस इन्‍हें पकड़ नहीं रही है। यह राजनीति का एक घिनौना चेहरा भोपाल में उजागर हुआ है। 
         अब दूसरे मामले की चर्चा करते हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कांतिलाल भूरिया यूं तो कभी गुस्‍से में नहीं आते हैं, लेकिन जब कोई उन्‍हें उत्‍तेजित करता है, तो फिर वे ऐसी-ऐसी भाषा में बात करते हैं, जो कि आम आदमी को नागवार गुजरती है। भूरिया ने 18 मई, 2013 को सेंधवा में कहा कि यहां कुछ छुटभैये नेता अपनी दुकान चला रहे हैं और भाजपा से हाथ मिलाकर कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस पर भूरिया ने गुस्‍से में कहा कि मैं ऐसे नेताओं को लात मारकर बाहर निकाल दूंगा, जो नेता मुझे अध्‍यक्ष नहीं मानते हैं, वह मेरे पैर की धूल भी नहीं हैं। उन्‍होंने कहा कि अभी भी वक्‍त है  कि बागी कांग्रेसी सुधर जाये, अन्‍यथा लात मारकर भगा दिया जायेगा। उन्‍होंने कहा कि जिनकी औकात पैर छूने लायक नहीं है, उन्‍हें शीघ्र की लात मारकर बाहर निकाल दिया जायेगा। भूरिया ऐसी भाषा का उपयोग समय-समय पर करते रहे हैं। इससे आसानी से यह समझा जा सकता है कि उनकी पीड़ा बार-बार कार्यक्रमों में सार्वजनिक हो रही है। 
           अब तीसरे प्रसंग में मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चर्चा का अर्थ यह है कि उन्‍हें कोई भी पत्र लिखता है, तो वे उसका जवाब तक नहीं देते हैं फिर वह नेता किसी भी स्‍तर का हो। इसके चलते विवाद आये दिन गहराते रहते हैं। अब यह विवाद फिर नये सिरे से कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने छेड़ा है। उनका कहना है कि वे अब तक 17 पत्र लिख चुके हैं, लेकिन एक पत्र का भी जवाब नहीं आया है। इन पत्रों में अत्‍यंत गंभीर और महत्‍वपूर्ण विषयों पर ध्‍यान केंद्रित किया गया था, लेकिन मुख्‍यमंत्री ने उनका जवाब तक देना उचित नहीं समझा। श्री सिंह ने कहा है कि राज्‍य की जनता के हित में और राजनीतिक शिष्‍टाचार के तहत पत्रों के जवाब मुख्‍यमंत्री को जरूर देना चाहिए। इससे पहले नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी विधानसभा में ऐसे आरोप लगाकर सनसनी फैला चुके हैं कि मुख्‍यमंत्री किसी भी पत्र का जवाब नहीं देते हैं। 
            अब बात चैरवेति की करें तो दीनदयाल प्रकाशन समिति की अध्‍यक्ष और सांसद श्रीमती सुमित्रा महाजन ने स्‍वीकार कर लिया है कि उनसे गलतियां हुई है और उन्‍होंने समिति की तरफ ध्‍यान तक नहीं दिया था। इससे यह भी साबित हो गया है कि राजनेताओं को किसी भी महत्‍वपूर्ण समिति का जिम्‍मेदार बना दिया जाये, लेकिन वह समिति पर गौर तक नहीं करते हैं जिसके फलस्‍वरूप समिति अपने हिसाब से काम करती है और फिर गड़बडि़या सामने आने लगती है तो समिति की अध्‍यक्ष पर ही उंगली उठती है। यही हाल चैरवेति विवाद में हुआ। एक संपादक को विवाद के चलते विदा होना पड़ा और भाजपा के दो नेता आपस में पूरे प्रसंग में उलझते रहे। अब श्रीमती महाजन सारी गलतियां मानकर नये सिरे से पत्रिका का क्‍लेवर बदलने का सपना दिखा रही हैं। 
           कुल मिलाकर राजनेताओं के इन प्रसंगों से यह जाहिर करना चाहते हैं कि  राजनेता अपने स्‍वार्थो की खातिर किस कदर राजनीति में डूबा हुआ है कि उसे और किसी की परवाह ही नहीं है। जब उसके पैर के नीचे की जमीन खिसकने लगती है, तब उसकी नींद खुलती है, लेकिन तब तक जनता का विश्‍वास टूटकर बिखर चुका होता है। अभी भी वक्‍त है कि राजनेताओं को नये सिरे से अपने भविष्‍य पर विचार करना चाहिए। 
                                   ''मप्र की जय हो''

शनिवार, 18 मई 2013

मनरेगा के भ्रष्‍टाचारी जेल जायेंगे

         मध्‍यप्रदेश में महात्‍मा गांधी रोजगार गारंटी योजना यानि विवादों का केंद्र बन गई है। इस योजना की शुरूआत से लेकर अब तक घाल-मेल, गड़बडि़या, अनियमितताएं, भ्रष्‍टाचार, कागजों में काम होना, अफसरों द्वारा राशि को हड़प जाना, नियम विरूद्व काम होने सहित आदि गड़बडि़यां हुई है, करोड़ों के भ्रष्‍टाचार सामने आये हैं, आईएएस अफसर निलंबित हुए हैं और उन्‍हें एकाध माह बाद फिर बहाल कर दिया गया है। डिप्‍टी कलेक्‍टर तो इस कदर निलंबित हुए हैं कि उनकी संख्‍या अनगिनत है। यही हाल इंजीनियरों का भी है। यह पूरी योजना जिस मकसद से केंद्र सरकार ने शुरू की थी उसमें मप्र बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुआ है। मध्‍यप्रदेश के कई हिस्‍सों में यह योजना भ्रष्‍टाचार की भेट चढ़ गई है। यही वजह है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री जयराम रमेश भी शिकायतों को सुन-सुन कर इस कदर परेशान हो गये हैं कि वे कई बार मप्र के आला अधिकारियों को खरी-खोटी सुना चुके हैं। मगर परिणाम वही ढाक के तीन पात हैं। अब 17 मई, 2013 को जयराम रमेश का एक नया ही रूप देखने को मिला है। उन्‍होंने बड़वानी में एलान कर दिया कि यदि कांग्रेस सत्‍ता में आई तो मनरेगा के भ्रष्‍टाचारी जेल जायेंगे। उन्‍होंने कहा कि मप्र में मनरेगा में सबसे ज्‍यादा भ्रष्‍टाचार है जिसमें बड़वानी तो नंबर वन पर है। बड़वानी जिले में मनरेगा का भ्रष्‍टाचार प्रदेश में सबसे बड़ा मामला है। गरीबों के हक का पैसा यहां के भाजपा नेता और अधिकार साथ मिलकर कार गये हैं। उन्‍होंने फिर दूसरी बार दोहरा कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो उसका पहला निर्णय यही होगा कि मनरेगा का मामला सीधे सीबीआई को सौंप दिया जाये, तो मनरेगा की राशि डकारने वाले सीखचों के पीछे जा सकें। 
         ऐसा नहीं है कि मनरेगा के तहत सिर्फ भ्रष्‍टाचार ही भ्रष्‍टाचार हुआ है। कई जिलों में बेहतर काम भी हुए हैं, लेकिन भ्रष्‍टाचार का पैमाना मप्र में ज्‍यादा हैं। इसलिए इस योजना का खोखलापन बार-बार उजागर हो रहा है। यह समझ से परे है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री जयराम रमेश को मनरेगा के भ्रष्‍टाचारियों पर कार्यवाही करने के लिए कांग्रेस की सरकार का आठ महीने आने तक इंतजार करने कहना पड़ रहा है। वे चाहे तो केंद्र में मंत्री हैं स्‍वयं इस मामले की जांच करवा सकते हैं और उन्‍होंने बड़वानी के मामले में जांच कराई भी है। संयोग से मप्र की अपर मुख्‍य सचिव और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की प्रमुख सचिव अरूणा शर्मा ने इस मामले को गंभीरता से लिया भी है। इसके बाद भी भ्रष्‍टाचारियों के हाथ इस कदर फैले हुए हैं कि बड़वानी तक पहुंच नहीं पा रहे हैं। यही हाल बुंदेलखंड में भी है। मनरेगा को लेकर जितना शोरगुल केंद्र सरकार करती है उससे अधिक हल्‍ला राज्‍य में एनजीओ मचाते हैं फिर भी मनरेगा का परिणाम ढाक के तीन पात ही होते हैं। कई स्‍तरों पर प्रयास किये हैं लेकिन मनरेगा में सुधार की कोई गुंजाईश दूर-दूर तक नजर नहीं आती है, बल्कि जिसको मौका मिलता है वह उसमें डूबकर अपना खेल खेल लेता है तभी तो मनरेगा मप्र में भ्रष्‍टाचार के दलदल में फंसती जा रही है और उससे बाहर निकलने के लिए अब उसमें तड़प भी नहीं है, क्‍योंकि भ्रष्‍टाचार से छेड़छाड़ करने वाले ज्‍यादा ताकतवर हैं और वे ज्‍यादा उपयोग कर रहे हैं। इसलिए मनरेगा भ्रष्‍टाचार की बलि चढ़ गई है। 
                                 ''मध्‍यप्रदेश की जय''

शुक्रवार, 17 मई 2013

फिर याद आया भाजपा को दिग्‍गी का कुशासन

       ऐसा लगता है कि चुनावी मौसम से पहले दिग्‍गी का कुशासन भाजपा को याद आने लगता है। अब तो मप्र के प्रभारी अनंत कुमार ने भी कह दिया है कि विकास की बात करो, लेकिन साथ-साथ दिग्‍गी के कुशासन की याद भी दिलाओ। इसका अर्थ यह है कि भाजपा को भीतर ही भीतर यह भय सताने लगा है कि विधानसभा चुनाव की जंग दिग्विजय सिंह से ही होगी, क्‍योंकि दिग्विजय सिंह बार-बार मप्र में आकर यह संकेत दे रहे हैं कि वह भाजपा को मात देने के लिए कोई कौर-कसर नहीं छोड़ेंगे। इसके अलावा एक अन्‍य पहलू पर भी विचार किया जाना चाहिए कि भाजपा 2003 से 2013 तक सत्‍ता में है। इस दौरान किसी भी एजेंसी से दिग्विजय सिंह के कुशासन की न तो जांच कराई गई और न ही कोई रिपोर्ट सामने आई। जो आरोप पत्र 2003 में जारी किया था उसके बारे में भी भाजपा पूरे चुनाव के मौसम में चुप बैठी रही। यानि न तो उन आरोपों पर कोई ध्‍यान दिया गया और न ही सरकार को जांच करने के लिए प्रेरित किया गया। इसके अलावा दिग्विजय सिंह पर आर्थिक अनियमितताओं के भी गंभीर आरोप समय-समय पर भाजपा ने लगाये हैं, लेकिन उन पर भी कोई जांच नहीं कराई गई। अब चुनाव का मौसम आ गया है, तो दिग्विजय सिंह की याद भाजपा नेताओं को सताने लगी है, फिर भले ही दिग्विजय सिंह ने अपने ऊपर लगे आरोपों की सच्‍चाई जाने के लिए भोपाल के जिला कोर्ट में मानहानि का मुकदमा उमा भारती पर लगाया हुआ है। यह मामला आज भी चल रहा है। 
भाजपा की बैठक में दिग्विजय सिंह याद आने लगे : 
           यह पहली बार है कि 16 मई को भाजपा ने प्रदेश पदाधिकारियों, जिला अध्‍यक्षों, महामंत्रियों और विधायक संगठन मंत्री की एक संयुक्‍त बैठक बुलाई थी। इस बैठक में चुनावी तैयारियों की कार्ययोजना बनाई जानी है। इस बैठक में सबसे ज्‍यादा हमले दिग्विजय सिंह पर हुए। भाजपा के प्रदेश प्रभारी और महासचिव अनंत कुमार ने तो मिशन 2013 फतह करने के टिप्‍स देते हुए कहा कि ''अतिविश्‍वास से नहीं पर आत्‍मविश्‍वास से भरे रहे'' जनता को समय-समय पर दिग्विजय सिंह के कुशासन की याद दिलाये, विरोधियों की अपवाहो से निपटने, विकास के साथ दुष्‍प्रचार का भी सहारा लें, अब चुनाव में महज 149 दिन शेष बचे हैं। ऐसी स्थिति में बूथ को मजबूत करें, जब भी चुनाव के दौरान केंद्रीय चुनाव आयोग के प्रतिनिधि आये तो उनके साथ पार्टी का पक्ष मजबूती से रहे, नहीं तो कांग्रेस के लोग एक वर्ग विशेष का नाम जुड़वा लेंगे। इस मौके पर अनंत कुमार ने कहा कि ऐसा माहौल बनाये कि 170 सीटें हमें मिल रही है यह बात तेजी से मार्केट में फैलाये। इस मौके पर भाजपा के संगठन महासचिव रामलाल भी मौजूद थे, उन्‍होंने भी जनाधार में वृद्वि सहित आदि सुझाव दिये। भाजपा के महासचिव अनंत कुमार को दिग्विजय सिंह का भय इस कदर सताय हु है कि उन्‍हें इशारों ही इशारों में पार्टी के मुखिया नरेंद्र सिंह तोमर को कहना पड़ा कि दिग्विजय सिंह के कुशासन का भय भी दिखाये, जनता के सामने दोनों प्रशासन की तुलना दिखाये, वर्ष 2008 के चुनाव में भी हम रिपोर्ट कार्ड और चार्जशीट हम मतदाताओं के बीच हम गये थे, इस बार भी यह किया जाना चाहिए। इससे साफ जाहिर है कि भाजपा किस कदर दिग्विजय सिंह से भीतर ही भीतर भयभीत हो गई है। जबकि अभी तो दिग्विजय सिंह अपने मूलरूप में उतरे ही नहीं हैं। जब मैदान में वे उतरेंगे, तो भाजपा को वे पसीना ला देंगे, ऐसा उनके समर्थक भी क‍हते हैं। अभी तो वे सिर्फ बयानों तक सीमित हैं और कहीं-कहीं सम्‍मेलनो को संबोधित कर रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनकी सक्रियता यह संकेत दे रही है कि अब वे भाजपा से दो-दो हाथ कर ही लें। तभी तो भाजपा उनसे भयभीत हैं।

मंगलवार, 14 मई 2013

उपेक्षित नेताओं की अब याद आने लगी भाजपा में

        जब-जब किसी के पेट में दर्द होता है, तो उसके इलाज के लिए वह डॉक्‍टर की तरफ भागता है। डॉक्‍टर राहत भी देता है, लेकिन अगर बीमारी का राज कुछ और हो, तो फिर उसके रास्‍ते भी और तलाशे जाते हैं। आजकल भाजपा में कुछ-कुछ ऐसा ही हो रहा है, जो नेता लंबे समय से मप्र भाजपा संगठन के कामकाज से दरकिनार होकर अपने बंगलों में कैद हो गये थे, अचानक उनकी याद मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेशाध्‍यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर को याद सताने लगी है। ऐसा नहीं है कि उनके बिना काम नहीं चलेगा, लेकिन चुनावी समर में एक हाथ और जुड़ जाये, तो ताकत ही मिलती है। इसी केंद्र बिन्‍दु पर चौहान काम कर रहे हैं और वे अब लगातार उन लोगों से संवाद कर रहे हैं, जो कि घर बैठेकर अपने-अपने काम में मसगूल हो गये थे। पहली शुरूआत तो संगठन में पांच चुनाव समितियां का गठन करके यह बताने की कोशिश की है कि हम किसी को भूले नहीं हैं। यही वजह है कि उसमें भी पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा को भाजपा संगठन एक तरह से भूल-सा गया था, वे धार और भोपाल में अपने निवास तक सिमटकर रह गये थे, लेकिन अब उन्‍हें घोषणा पत्र समिति का संयोजक बनाया गया है यह अपने आप में चौंकाने वाला कदम है। इसी प्रकार अन्‍य समितियों में पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, जयश्री बनर्जी आदि के नाम भी पहली बार किन्‍ही समितियों में देखे गये हैं। पटेल को भाजपा में लाने की विशेष मुहिम चौहान ने चलाई थी और वे जनशक्ति पार्टी को छोड़कर भाजपा में शामिल हो गये थे। इसके बाद उन्‍हें किसी ने याद नहीं किया और वे एक मजदूर संगठन का काम देख रहे थे। इसी प्रकार एक और नेता जो लंबे समय से उपेक्षित थे अनिल माधव दबे उनकी भी यादव सरकार और संगठन को आने लगी है। न सिर्फ मुख्‍यमंत्री ने स्‍वयं जाकर दबे से मुलाकात की, बल्कि आधे घंटे तक 13 मई, 2013 को आधे घंटे तक भोपाल में विस्‍तार से विचार-विमर्श किया। संकेतों पर विश्‍वास करें, तो दबे को चुनाव प्रबंधन का गुरू माना जाता है। वर्ष 2003 में उन्‍हें महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी दी गई थी और वे जाबली नामक एक केंद्र के मुखिया बनकर पूरे राज्‍य में चर्चा के विषय बने हुए थे। इसी प्रकार वर्ष 2008 में भी उन्‍हें चुनाव प्रबंधन का काम सौंपा गया था। अब फिर से उन्‍हें चुनाव प्रबंधन का काम देने पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। इसीलिए चौहान ने उनसे उनके निवास पर पहुंचकर चर्चा की है। कुल मिलाकर भाजपा में जब जरूरत होती है, तभी नेता को याद किया जाता है। ऐसा अब नेताओं को भी भास होने लगा है, अन्‍यथा कई नेता वर्षों अपने बंगलों में कैद रहते हैं और उन्‍हें पार्टी याद तक नहीं करती है, पर जब जरूरत होती है, तो पार्टी याद करने पहुंच जाती है। अब यह नेताओं को तय करना है कि वे संगठन के लिए प्रतिवद्व हैं अथवा अपने नेताओं के लिए। 
                                     ''मप्र की जय हो''

सोमवार, 13 मई 2013

मप्र के सामाजिक गुणा-भाग पर नजर गड़ाये हुए है भाजपा आलाकमान

      भाजपा आलाकमान को लगातार राज्‍यों में मिल रही पराजय के बाद से अब मध्‍यप्रदेश के बारे में आलाकमान बेहद गंभीर हो गया है। वह हर हाल में मप्र पर काबिज होना चाहता है। इसके लिए वोटों के सामाजिक गुणा-भाग का अभी से आकलन शुरू कर दिया गया है। इसके साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के वोटों पर भी भाजपा ने निगाहें गड़ा दी हैं। इस वर्ग के वोट पर ही भाजपा की सत्‍ता में वापसी तय मानी जायेगी। यूं तो मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समाज के हर वर्ग की चिंता की है और ऐसा कोई वर्ग नहीं है जिसमें उन्‍होंने पैठ बनानकी कोशिश न की हो। इसके लिए माध्‍यम बना मुख्‍यमंत्री निवास पर पंचायतों का आयोजन। इसके अलावा भी मुख्‍यमंत्री गाहे-बगाहे समाज के उस वंचित तबके को भाजपा की तरफ आ‍कर्षित करने की कोशिश करते रहे हैं, जो कि उनसे दूर चला गया था। मप्र में आरक्षित सीटें ही निर्णायक भूमिका अदा करेगी, क्‍योंकि इन सीटों की संख्‍या 82 है। जिसमें से वर्तमान में भाजपा के पास 50 सीटें हैं। यूं देखा जाये तो मप्र में एससी वर्ग के लिए आरक्षित सीटें 47 हैं, जबकि एसटी कोटे की सीटों की संख्‍या 35 है। इस वर्ग में आदिवासी वर्ग को लेकर भाजपा आलाकमान बेहद चिंतित हो गया है, क्‍योंकि कांग्रेस ने पार्टी का मुखिया आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया को बनाया हुआ है जिनकी अपनी आदिवासियों में गहरी पैठ भी है। भाजपा में ऐसे आदिवासी कद्दावर नेताओं का टोंटा है, जो नेता है उनमें फग्‍गन सिंह कुलस्‍ते, रंजना बघेल, अनसुईया उईके, जगन्‍नाथ सिंह सहित आदि शामिल हैं। हाल ही में भाजपा सरकार ने अपने कैबिनेट से एक आदिवासी नेता कुंवर विजय शाह का इस्‍तीफा हुआ है और वे लगातार सरकार के खिलाफ बयानबाजी भी कर  रहे हैं। इसी प्रकार अनुसूचित जाति की सीटों को लेकर भी आलाकमान की चिंताएं  लगातार बढ़ती जा रही हैं। इस चिंता से साफ जाहिर है कि आलाकमान ने कम से कम मप्र पर गौर करना तो शुरू किया है। यह देखा जा रहा है कि मप्र में जो भी निर्णय हो रहे हैं उनमें मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ही मुख्‍य भूमिका अदा कर रहे हैं पर अब आलाकमान यह मिथक तोड़ने के मूड़ में आ गया है। सूत्रों का कहना है कि आलाकमान ने 82 सीटों का फीडबैक भी भाजपा से बुलाया है। ताकि उसमें अलग-अलग विधायकों की स्थितियों का पता लगाया जा सके। आलाकमान तो इस मूड़ में भी आ गया है कि अगर किसी विधायक का परफार्मेन्‍स बेहतर नहीं है, तो उसे टिकट से वंचित किया जा सकता है। पहली बार भाजपा आलाकमान ने मप्र पर अपनी जो नजरे गड़ाई हैं उससे प्रदेश के नेताओं की नींद उड़ना स्‍वाभाविक है। 
                                             ''मप्र की जय हो''

रविवार, 12 मई 2013

उमा भारती को फिर गुस्‍सा आयेगा

        यूं तो उमा भारती ने अपने आपको काफी परिवर्तन कर लिया है। वह अब छोटी-छोटी बातों पर नाराज नहीं होती, लेकिन जब उपेक्षा की सीमाएं टूट जाये, तो फिर नाराज होना स्‍वाभाविक है। इस बार नाराजगी की वजह है भाजपा द्वारा चुनाव अभियान के लिए बनाई गई समितियों में उमा भारती को दरकिनार करना। यहां तक कि भाजपा के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष प्रभात झा को एक समिति में सदस्‍य बनाया है। इन समितियों में उमा भारती को कहीं भी समाहित नहीं किया गया है। तब तो उमा भारती को गुस्‍से में आना स्‍वाभाविक है, वे जब से भाजपा की राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष बनी हैं, तब से एक बार पार्टी कार्यालय में पहुंचकर पार्टी नेताओं से गले लग चुकी हैं। इसके साथ ही वे बार-बार कह रही है कि शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्‍व में तीसरी बार सरकार बनेगी। इसके बाद भी उन्‍हें चुनाव से जुड़ी समितियों में दरकिनार कर दिया गया है। भाजपा ने चुनाव की तैयारी के लिए पांच समितियों का एलान किया है जिसमें चुनाव अभियान समिति, समन्‍वय समिति, वित्‍त समिति, अनुशासन समिति और घोषणा पत्र समिति। इन समितियों में पूर्व मुख्‍यमंत्री सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी और बाबूलाल गौर को भी स्‍थान मिला है। उमा भारती किसी भी समिति में नहीं हैं। चुनाव अभियान समिति जैसी महत्‍वपूर्ण समिति का संयोजक शिवराज सिंह चौहान को बनाया गया है। इस समिति में कई ऐसे नाम भी हैं, जो कि स्‍वास्‍थ्‍य की दृष्टि से दो कदम आगे चल नहीं सकते, लेकिन उन्‍हें भी समिति में शामिल किया गया है। लंबे समय बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को भी चुनाव अभियान समिति का सदस्‍य बनाया गया है। सबसे चौंकाने वाला नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा का है। वर्मा और मुख्‍यमंत्री चौहान के बीच हमेशा मतभेद रहे हैं, लेकिन विक्रम वर्मा को एक घोषणा पत्र समिति का संयोजक बनाया गया है। इसके साथ ही उन्‍हें चुनाव अभियान समिति में भी स्‍थान मिला है। घोषणा पत्र समिति निश्चित रूप से एक महत्‍वपूर्ण समिति है, जो कि पार्टी का चुनावी एजेंडा तय करेगी। इन समितियों में पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व मुख्‍यमंत्री और वर्तमान में भाजपा के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष उमा भारतको कहीं भी स्‍थान नहीं मिला है। यहां तक कि उनके समर्थकों को भी तवज्‍जो नहीं मिली है। इससे साफ जाहिर है कि उमा भारती को अब गुस्‍सा आने ही वाला है। किसी भी दिन वह अपनी नाराजगी जाहिर कर सकती हैं। यह भी हो सकता है कि वे अपनी उपेक्षा को खून का घूंट पीकर रह जाये और कहीं कोई टिप्‍पणी न करें, लेकिन यह सच है कि उमा भारती में पिछले एक साल से चौंकाने वाला बदलाव आया है। इसके चलते यह भी आशंकाएं हैं कि वह कोई टिप्‍पणी न करें और चुपचाप अपने अभियान में जुट जाये और भविष्‍य की रणनीति बनाये। 
                                           ''मप्र की जय हो''  

शनिवार, 11 मई 2013

फिर कम होने लगी बेटियां मध्‍यप्रदेश में

        भले ही मध्‍यप्रदेश सरकार बे‍टी बचाओ अभियान के ढोल कितना ही पीटे तब भी आंकड़ों में बेटियां लगातार राज्‍य से कम होती जा रही हैं। इसका एक कारण नहीं है, बल्कि कई कारण हैं। सामाजिक विषमता सबसे बड़ा जहर है, जो कि हर परिवार में तेजी से फैला हुआ है। र में बहु आगमन के साथ ही बेटे की चाहत बलवती हो जाती है, तो कहीं खुद नारी की इच्‍छा होती है कि उसे बेटा हो, ताकि वह समाज के सामने सीना तानकर खड़ी हो सके। इसके साथ ही जिस तरह से मासूम बेटियों के साथ दुष्‍कर्म की घटनाओं का ग्राफ बढ़ रहा है उसने भी महिलाओं और परिवार को बेचैन किया है। कदम-कदम पर बेटियां असुरक्षित है उनकी सुरक्षा को लेकर न तो सरकार चिंतित है और न ही समाज। ऐसी स्थिति में परिवार और महिला भी यह सोचने पर विवश हो जाती है कि क्‍यों न बेटा हो तो बेहतर है। इसी का दुष्‍परिणाम है कि बेटियों की संख्‍या लगातार घट रही है। हाल ही में जो आंकड़े मिले हैं उसमें बाल लिंगानुपात 14 अंक गिरा है। एक दशक में यह सबसे चिंताजनक कमी महसूस की जा रही है। प्रदेश में वर्ष 2001 से 2011 के बीच बेटियों की आबादी में चिंताजनक कमी दर्ज की गई है। वर्ष 2011 की जनगणना के प्राथमिक आंकड़े भी खतरे की घंटी बजा रहे हैं। सूबे में छह साल तक के बच्‍चों में 1000 लड़कों पर महज 918 लड़किया रह गई हैं। वर्ष 2011 में शून्‍य से 6 वर्ष के आयु समूह में 1000 लड़कों पर 932 लड़किया थी। इससे साफ जाहिर है कि प्रदेश में लिंगानुपात 14 अंकों में गिरावट दर्शा रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश में कुल आबादी 7,26,26,809 है। इसमें पुरूष 3,76,12,306 तथा महिलाएं 3,50,14,503 हैं। इन आंकड़ों से भी साफ जाहिर है कि पुरूष और महिलाओं के बीच अंतर साफ तौर पर झलकता है। मप्र में ग्‍वालियर चंबल संभाग में तो सबसे कम लड़कियां है। इसके साथ ही विंध्‍य में भी यही स्थिति है। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस समस्‍या को बारीकी से समझ लिया था और उन्‍होंने बेटी बचाओ अभियान राज्‍य भर में चलाया। कई स्‍थानों पर जागरूकता रैली के जरिये रोड-शो किये। इसका नेतृत्‍व स्‍वयं चौहान कर रहे थे। इसके बाद भी आंकड़े जो बता रहे हैं वह तो राज्‍य के हर नागरिक के लिए चिंताजनक हैं। यूं भी मध्‍यप्रदेश में उड़ीसा, बिहार, उत्‍तरप्रदेश से बहुएं खरीकर लाई जाने लगी हैं, ताकि वे अपने बेटों के हाथ पीले कर सकें। ऐसे कई प्रसंग ग्‍वालियर-चंबल संभाग, विध्‍य एवं बुंदेलखंड में देखे जा सकते हैं। इन घटनाओं से साफ जाहिर है कि मप्र बेटियों के घटते लिंगानुपात से चिंतित तो हैं, लेकिन अभी भी सरकार के अभियान को समाज ने अंगीकार नहीं किया है अन्‍यथा परिणाम कुछ और ही होते। इसके लिए सरकार को नये सिरे से विचार करना होगा। 
                                         ''मप्र की जय''

गुरुवार, 9 मई 2013

115 सीटों पर महिलाओं को चुनाव लड़ायेगी भाजपा

आप चौंकिये नहीं, यह सच है कि मप्र के विधानसभा चुनाव में इस बार 230 विधानसभा सीटों में से 115 विधानसभा सीटों पर महिलाओं को टिकट दिया जायेगा। यह एलान स्‍वयं मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 8 मई, 2013 को होशंगाबाद जिले में अटल ज्‍योति अभियान के शुभारंभ के मौके पर किया है। इसके साथ ही भाजपा की राजनीति में जबर्दस्‍त भूचाल आ गया है। हर नेता अपने आसपास महिला नेत्रियों को खोजने लगा है। महिलाओं को विधानसभा चुनाव में महत्‍व मिलने से महिला मोर्चा तो गदगद है ही, लेकिन साथ ही साथ उन महिलाओं में भी जोश आ गया है, जो कि लंबे समय से संगठन के लिए काम कर रही हैं, लेकिन संगठन ने उन्‍हें टिकट देने के लिए विचार तक नहीं करता। इससे साफ जाहिर है कि ऐसी महिलाओं को सीएम की घोषणा से खुश तो होना ही चाहिए पर उस पर कितना अमल होगा, यह तो वक्‍त ही बतायेगा। मुख्‍यमंत्री ने कहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा 50 फीसदी सीटों पर महिलाओं को चुनाव लड़ायेगी। चुनाव में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए फैसला लिया गया है। उन्‍होंने कहा कि प्रदेश में पहली बार विधानसभा चुनाव में महिलां को ज्‍यादा से ज्‍यादा टिकट देने की कोशिश की जा रही है। उन्‍होंने यह भी जोड़ा कि हमने भैयाओं को विधानसभा चुनाव से दूर रहने की सलाह भी दे दी है। मुख्‍यमंत्री के इस एलान से पार्टी के प्रदेशाध्‍यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर भी असमंजस में पड़ गये हैं। उन्‍होंने यह तो कहा कि महिलाओं में जीतने का यदि माददा होगा, तो उन्‍हें अधिक से अधिक टिकट दिये जायेंगे, पर वे 50 फीसदी टिकट देने की राय पर सहमत नहीं हैं। इसी प्रकार संगठन महामंत्री अरविंद मेनन ने कहा है कि संगठन मिल-जुलकर इस पर विचार करेगा। 
नगरीय निकाय चुनाव में 33 प्रतिशत आरक्षण : 
            महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए लगातार राजनैतिक दल अपने-अपने स्‍तर पर सक्रिय हैं। निकाय चुनाव में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ है। यही स्थिति पंचायत चुनाव में भी है। करीब डेढ़ दशक से मध्‍यप्रदेश में महिलाओं को निकाय और पंचायत चुनाव में आरक्षण मिल रहा है और महिलाएं चुनकर भी आ रही हैं, लेकिन आज भी महिलाओं का जो नेतृत्‍व समाज को मिलना चाहिए वह आज तक नहीं मिल पाया है। कई महिलाएं चुनाव में जीत तो जाती हैं, लेकिन उनके पतिदेव ही उनके पथ का संचालन करते हैं। ऐसे कई उदाहरण राज्‍य में जहां-तहां मिल जाते हैं। अब अगर महिलाओं को 50 फीसदी टिकट विधानसभा चुनाव में दिये जाते हैं, तो फिर क्‍या होगा, यह तो भाजपा के नेता भली-भांति जानते हैं। अभी भी कई महिलाएं जिन्‍हें लाल बत्‍ती मिली हुई हैं वह अपने रूतबे के अलावा अपना प्रभाव एक कदम आगे नहीं बढ़ा पाई हैं, तब फिर इनसे विधानसभा चुनाव जीतने की उम्‍मीद कैसे की जा सकती है। मुख्‍यमंत्री के एलान ने निश्चित रूप से भाजपा की राजनीति को सक्रिय कर दिया है, लेकिन इस पर कितना अमला होगा यह तो भविष्‍य ही बतायेगा। 
                                              ''मप्र की जय''  

बुधवार, 8 मई 2013

दलित युवक का दूल्‍हा बनकर घोड़ा पर बैठना आज भी गुनाह है मप्र में

         क्‍या आप विश्‍वास करेंगे कि मप्र में आजादी के 66 साल बाद भी दलित नौजवान दूल्‍हा बनकर घोड़ी पर बैठने की हशरत पूरा नहीं कर पाता। दलित युवक का घोड़ी पर बैठना आज भी सवर्णों के लिए आंखों की किरकिरी बना हुआ है। उसका गुनाह यह है कि वह सवर्णों के सामने घोड़ पर बैठकर शान से बारात गांव से निकालना चाहता है, लेकिन सवर्णों को यह रास नहीं आता है। हर साल शादी के मौसम में प्रदेश के किसी न किसी हिस्‍से में ऐसी घटनाएं होती हैं। पुलिस मूकदर्शक बनी बैठी रहती है, जब मामला तूल पकड़ता है, तो कार्यवाही होती है। तब भी सवर्णों को पुलिस डरा धमका कर छोड़ देती है और बेचारा दलित युवक जिंदगी भर अपने मन में यह अफसोस पाले रहता है कि आखिरकार वह शादी के दिन भी घोड़ी पर बैठ नहीं पाया। 
दलित युवक का घोड़ पर न बैठना :
          प्रदेश में आज भी दलितों को द्विम दर्ज का माना जाता है। यही वजह है कि कई हिस्‍सों में उन्‍हें न तो मंदिरों में प्रवेश मिल पा रहा है और न ही शादी के दौरान घोड़े पर बैठ पाते हैं। कई इलाकों में तो आज भी बदतर स्थिति यह है कि सवर्णों के घर के सामने से जब दलित परिवार के लोग निकलते हैं, तो हाथों में चप्‍पल लेकर निकलना पड़ता है। अगर वे चप्‍पल पहनकर निकल जाये, तो यह सवर्णों की शान के खिलाफ है। इसी प्रकार सवर्णों को यह भी नागवार गुजरता है कि कोई दलित युवक की जब शादी हो, तो वह घोड़े पर संवार होकर गांव से न निकले, पर बदलते समाज में ऐसे दलित युवक सामने आ रहे हैं, जो कि न सिर्फ घोड़े पर बैठकर बारात निकाल रहे हैं, बल्कि सवर्णों को चुनौती भी दे रहे हैं, फिर भले ही इसके लिए उन्‍हें पुलिस का सहारा न लेना पड़े। दलित युवकों को घोड़े पर न बैठने से रोकने की परंपरा आज भी मंदसौर, नीमच, राजगढ़, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, पन्‍ना, सतना, रीवा आदि जिलों में कायम हैं। कहीं-कहीं दलित युवक विरोध में सामने भी आ रहे हैं। 
दलित दूल्‍हे की बारात पर पथराव : 
        मई माह में दो घटनाएं हुई हैं जिसमें दलित युवक क घोड़े पर बैठने से रोका गया है। पहली घटना 6 मई, 2013 की है जिसमें नीमच जिले के मनासा थाना अंतर्गत ग्राम सेमली इस्‍तमुरार में दलित बारात को रोकने का प्रयास किया गया और जब दलित युवक घोड़े पर बैठकर गांव से बिन्‍दोली निकाल रहा था, तब सवर्णों ने अपने घरों की छतों से उस पर पथराव किया। इस पथराव के दौरान 4-5 लोग घायल हो गये, जिनमें नर्मदा बाई पति जगदीश मेगवाल, नौदराम पिता रामनिवास को गहरी चोटे आई हैं। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पुलिस को एक दिन पहले दलित परिवारों ने कुकड़ेश्‍वर थाने में लिखित आवेदन दे दिया था कि उनकी बारात को सवर्ण वर्ग रोकेंगे, जिस पर पुलिस तैनात की गई, लेकिन पुलिस की मौजूदगी में ही सवर्णों ने दलित युवक की बारात पर पथराव किया। अब पुलिस ने 4 आरोपियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया है, लेकिन फिलहाल आरोपी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। इसी प्रकार दूसरा मामला 8 मई, 2013 का है, जो कि श्‍योपुर जिले से संबंधित हैं। इस इलाके में जब दलित युवक अपनी बारात घोड़े पर बैठकर निकाल रहा था, तब सवर्णो ने अचानक बारात पर हमला बोल दिया। मामला पुलिस तक पहुंचा, पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। उसमें चौंकाने वाली बात यह है कि जब बारात निकल रही थी, तब सवर्णों ने जबरन दलित युवक को घोड़े से उतार दिया। जिस पर भारी विरोध हुआ और मारपीट की नौबत तक बन गई। दुखद पहलू यह है कि प्रदेश में ऐसी घटनाएं नित-प्रति हो रही हैं। न तो सामाजिक कार्य करने वाले संगठन इस दिशा में कोई कार्य कर पा रहे हैं और न ही राजनीतिक दल इसका तीव्र विरोध करते हैं। यही वजह है कि सवर्णो को ताकत मिलती है और वे दलित युवकों की बारात तक रोकने की हिम्‍मत जुटा लेते हैं। ऐसा नहीं है कि एक-दो घटनाएं होती हैं। हर साल ऐसी घटनाओं की संख्‍या लगातार बढ़ रही हैं। फिर भी प्रशासन भी इस दिशा में न तो सजग है और न ही सक्रिय है। जिसका परिणाम दलित युवक जीवन भर भोगता है। फिर भी राज्‍य सरकार बार-बार अपना दलित प्रेम दर्शाती है, लेकिन जब दलितों पर उत्‍पीड़न और अत्‍याचार हो रहे हैं उसे रोकने में उसकी कोई दिलचस्‍पी नहीं है। यही वजह है कि आज भी मप्र में दलित युवकों को घोड़े से नीचे उतारने की घटनाएं बढ़ती ही जा रही है और हम सब मौन रहकर दर्शक की भांति ऐसी घटनाओं के साक्षी बन रहे हैं, जो कि हमारे लिए न सिर्फ दुर्भाग्‍यपूर्ण हैं, बल्कि दुखद भी है। 
                                ''मप्र की जय हो''

मंगलवार, 7 मई 2013

भाजपा में भी शुरू हो गई गुटबंधी

      फिलहाल हो मध्‍यप्रदेश भाजपा को गुटविहीन राजनैतिक दल कहा जाता था, लेकिन धीरे-धीरे सत्‍ता का रोग भाजपा में भी आ गया है। अब यहां भी गुटों में लोग बंटने लगे हैं। बंद कमरों में रणनीतियां बन रही हैं। एक दूसरे पर हमले की योजना को आकार दिया जा रहा है। स्‍वागत और बैठकों के जरिये अपनी-अपनी ताकत का प्रदर्शन हो रहा है। भले ही पार्टी के बड़े नेता दंभ के साथ यह कहते नजर आये कि भाजपा में फिलहाल कोई गुटबाजी नहीं है, लेकिन सड़कों पर जो नजारा देखने को मिल रहा है उससे तो साफ तौर पर देखने को मिल रहा है कि भाजपा में गुटबाजी का बीजारोपण हो चुका है। इसके अलावा हाल ही में पार्टी के राष्‍ट्रीय पदाधिकारियों में दो बड़े नेताओं की नियुक्तियों से पूरी भाजपा में भूचाल से आया हुआ है। इनमें पूर्व मुख्‍यमंत्री उमा भारती और पूर्व प्रदेशाध्‍यक्ष प्रभात झा की राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष की नियुक्ति से भाजपा की आंतरिक राजनीति खुलकर सामने आ गई है। यूं तो सुश्री भारती और श्री झा बार-बार सार्वजनिक कार्यक्रमों में यह कहते हुए थक नहीं रहे हैं कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्‍व में तीसरी बार सरकार बनेगी। दोनों नेता अपने-अपने गुणा भाग से जीते हुए विधायकों की संख्‍या भी बता रहे हैं। इन नेताओं के कमरों में बंद होते ही फिर जो राजनीति शुरू होती है, तो उसके नजारे ही कुछ और होते हैं, क्‍योंकि बंद कमरों में जो चेहरे प्रवेश करते हैं वे जब बाहर आते हैं, तो उनके चेहरे पर मुस्‍कान होती है और अपने नेता का आर्शीवाद मिलने का अट्ठाहस अलग ही दिखता है। इसके अलावा बंद कमरों में जो भी बातचीत होती है, वे किसी न किसी माध्‍यम से बाहर आ ही जाती है। राजनेताओं को गलतफेहमी होती है कि बंद कमरों की राजनीति बाहर नहीं जाती है। ऐसा बहुत कम होता है, लेकिन अधिकांश बातचीत बाहर आ ही जाती है। इसलिए ऐसे संकेत मिलने लगे हैं कि विधानसभा चुनाव के दौरान उमा भारती और प्रभात झा अपने-अपने समर्थकों को विधानसभा चुनाव में टिकट दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगायेंगे और तब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा पार्टी अध्‍यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर उन चेहरों को रोकने की कोशिश करेंगे, तो फिर टकराव होगा ही। इसके अलावा चुनाव की टिकटों का फैसला संसदीय बोर्ड करेगा। जिसमें उमा और झा अपनी ताकत लगाने में कौर-कसर नहीं छोड़ेंगे। उमा को दिल्‍ली की राजनीति में एक धड़ा बेहद पसंद करता है और उसे लोकसभा चुनाव में उमा की बेहद जरूरत भी है। ऐसी स्थिति में उमा को नाराज करना संभव नहीं है। इसलिए अभी से अभाष होने लगा है कि मप्र की राजनीति में गुटबाजी के बीज डल चुके हैं बस उसका बीजारोपण होना बाकी है। यूं तो इसकी शुरूआत सितंबर महीने से नजर भी आने लगी है। फिलहाल तो भाजपा के सारे नेता फीलगुड में और इसी फीलगुड के सहारे तीसरी बार सत्‍ता हासिल करना उनका मकसद है। 
                              ''मप्र की जय हो''

सोमवार, 6 मई 2013

मध्‍यप्रदेश में भ्रष्‍टाचार की प्रयोगशाला भी

        अभी तक तो कांग्रेसी नेता यह आरोप लगा-लगाकर थक गये थे कि हिन्‍दुत्‍व की प्रयोगशाला मध्‍यप्रदेश है। अब केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्‍बल ने मध्‍यप्रदेश को भ्रष्‍टाचार की प्रयोगशाला से नबाजा है। शायद उन्‍हें यह मालूम नहीं है कि मप्र में भ्रष्‍टाचार भाजपा राज में ही नहीं हो रहा है। इससे पहले भी भ्रष्‍टाचार की गंगा बहती रही है। यही वजह है कि भ्रष्‍टाचार के मामले में मप्र कई राज्‍यों से अव्‍वल है। बढ़ते भ्रष्‍टाचार की वजह से ही यहां पर जांच एजेंसियों की बाढ़ सी आई हुई है। राज्‍य सरकार ने कई एजेंसियां खोल रखी है इसके बाद भी भ्रष्‍टाचार थमने का नाम नहीं ले रहा है। बार-बार राज्‍य के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह कहते रहे हैं कि उनके रहते भ्रष्‍टाचार बर्दाश्‍त नहीं किया जायेगा। इसके बाद भी घटिया निर्माण, खरीदी में स्‍तरहीन सामग्री का खरीदा जाना तथा सरकारी फाइलों के जरिये भ्रष्‍टाचार की गंगा खूब बह रही है। अब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्‍बल ने एक नया ही राग अलापा है कि मप्र तो भ्रष्‍टाचार की प्रयोगशाला है। उन्‍होंने कहा कि पूरे देश में एलओसी का अर्थ लाइन ऑफ कंट्रोल यानि नियंत्रण रेखा होता है, लेकिन मप्र में यह लेबोरिटी ऑफ करप्‍शन (भ्रष्‍टाचार की प्रयोगशाला) है। उन्‍होंने गणित की भाषा में कहा कि यहां करप्‍शन और क्राइम मिलकर सौ स्‍क्‍वयर हो गये हैं।  वे यहां तक कहते हैं कि मप्र के अधिकारी भी भ्रष्‍ट हैं। इसमें आईएएस, आईएफएस और आईपीएस अफसर तथा राज्‍य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शामिल हैं। उनका मानना है कि आईएएस जोशी दंपत्ति सहित कई मामले भ्रष्‍टाचार के चर्चा के मामले बने हुए हैं। भ्रष्‍टाचार और अपराध के गठजोड़ का ही नतीजा है कि यहां रोजाना दुष्‍कर्म की घटनाएं हो रही हैं। अब केंद्रीय मंत्री को कौन बताये कि मप्र में भ्रष्‍टाचार भाजपा सरकार के राज में ही नहीं हो रहा है, बल्कि कांग्रेस सरकार में भी खूब फला-फूला है। भाजपा सरकार में थोड़ा भ्रष्‍टाचार का ग्राफ बढ़ गया है, क्‍योंकि छापों में लाखों और करोड़ों की सम्‍पत्तियां भ्रष्‍ट अफसरों के यहां से मिल रही हैं। आरोप लगा देना आजकल राजनेताओं की फितरत हो गई है। यूं भी कांग्रेस और भाजपा नेता अब अपने-अपने आईनों से आरोप चस्‍पा करते हैं, लेकिन मप्र के राजनेता इन आरोपों पर भी चुप्‍पी साध जाते हैं। यही वजह है कि राज्‍य को लेकर कोई भी नेता किसी भी प्रकार के आरोप लगा देता है और राज्‍य का कोई भी नेता आपत्ति तक नहीं करता है। अब भाजपा जरूर इस पर नाराजगी जाहिर कर रही है, ये तो यहां की राजनीति का दस्‍तूर हो गया है, लेकिन इसके बाद भी भ्रष्‍टाचार केंद्र सरकार से लेकर राज्‍य सरकार तक नासूर की तरह फैलता जा रहा है। इस पर लगाम लगाने की दिशा में किसी भी स्‍तर पर कोई भी प्रयास नहीं हो रहा है। यही सिलसिला चलता रहा, तो मप्र में भ्रष्‍टाचार का ग्राफ यूं ही बढ़ता रहेगा और मप्र की सम्‍पत्ति भ्रष्‍ट अफसर अपने-अपने हिसाब से उसका आनंद लेते रहेगे और राजनेता आरोप लगाते रहेगे तथा जनता मूकदर्शक बनी आरोपों पर बहस करती ही नजर आयेगी । 
                                     ''मप्र की जय हो''

रविवार, 5 मई 2013

दिग्विजय और सिंधिया में फिर नूरा कुश्‍ती

        भले ही कांग्रेस की चाल अभी धीमी है और विधानसभा चुनाव को लेकर जैसी तैयारियां दिखनी चाहिए, वैसी कांग्रेस में दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। इसके बाद भी मुख्‍यमंत्री पद को लेकर नेताओं में बयानबाजी के जरिये कांग्रेस की राजनीति में उफान लाने की लगातार कोशिश हो रही है। हाल ही में एक बार फिर मुख्‍यमंत्री पद को लेकर दिग्विजय सिंह ने जैसे ही केंद्रीय ऊर्जा राज्‍यमंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को बेहतर उम्‍मीदवार बताया तो राजनीति गलियारों में भूचाल आ गया। विशेषकर ग्‍वालियर-चंबल संभाग की कांग्रेस राजनीति में तो गर्माहट नेताओं के चेहरों पर साफ तौर पर नजर आने लगी थी, लेकिन दूसरे दिन ही केंद्रीय ऊर्जा राज्‍यमंत्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने दिग्विजय सिंह के बयान पर बोलकर सारा मामला ठंडा कर दिया। उन्‍होंने ने तो यह तक कह दिया कि न तो वे मुख्‍यमंत्री पद की दौड़ में हैं और न ही भविष्‍य में रहेंगे। आम कार्यकर्ता की तरह पार्टी के लिए हमेशा काम करते रहेंगे। इससे साफ जाहिर है कि सिंधिया को घेरने के लिए जो तीर छोड़ा गया था वह कामयाब नहीं हो पाया। 
दिग्विजय बनाम सिंधिया 
      मध्‍यप्रदेश की कांग्रेस राजनीति में दिग्विजय सिंह बनाम सिंधिया के बीच तनातनी कोई नई बात नहीं है। पिछले नौ सालों में जब-जब दोनों को मौके मिले हैं,तो दोनों ने एक-दूसरे पर तीखे बार करने का मौका हाथ से नहीं जाने दिया है। हालात इस कदर इन नेताओं के बीच बिगड़ चुके हैं कि दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ जंग तक छेड़ दी थी। बीच में कांग्रेस अध्‍यक्षता श्रीमती सोनिया गांधी को आना पड़ा, तब जाकर विवाद शांत हुआ था। मध्‍यप्रदेश की राजनीति आज पूरी तरह से दिग्विजय सिंह के ईद-गिर्द घूम रही है। इसके बाद भी ऐसे नेता भी हैं, जो कि दिग्विजय सिंह के साथ कदमताल करने को तैयार नहीं हैं। उनमें केंद्रीय मंत्री कमलनाथ, केंद्रीय ऊर्जा राज्‍यमंत्री सिंधिया, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, सांसद सत्‍यव्रत चतुर्वेदी शामिल हैं। दिग्विजय सिंह ने इस वक्‍त प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष और कांग्रेस विधायक दल पर अपने समर्थकों को बैठा रखा है। इसके बाद भी कांग्रेस के नेता ''अपनी ढपली अपना राग'' गाने में एक पल की भी देरी नहीं करते हैं और वे अपने-अपने हिसाब से राजनीति कर रहे हैं। यही दिग्विजय सिंह को नागवार गुजरता है और फिर वे अपने हिसाब से दांव पेंच खेलते हैं, लेकिन हर बार उनका दांव कामयाब नहीं हो पाता है। यह सच है कि दिग्विजय सिंह के समर्थकों की संख्‍या मप्र में सबसे अधिक हैं और इसकी एक बड़ी वजह उनका दस साल तक मुख्‍यमंत्री पद पर बने रहना है। 

मिलकर कदमताल करेंगे नेता :
            अब एक बार फिर से दिग्विजय सिंह चाहते हैं कि मप्र में सारे नेता मिलकर कांग्रेस की सरकार बनाने में कदमताल करें। इसके लिए नेताओं की सहमति भी है। सारा मामला टिकट वितरण पर आकर थम जायेगा। नेता अपने-अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में कोई कौर-कसर नहीं छोड़ेंगे, ऐसी स्थिति में दिग्विजय सिंह उन लोगों को तो टिकट लेने से रोकेंगे, जिनकी वजह से पिछले बार पार्टी को कदम-कदम पर नीचा देखना पड़ा था। ऐसी स्थिति में फिर टकराव की नौबत बने, तो कोई आश्‍चर्य की बात नहीं होगी। इस टकराव को रोकने के लिए कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी ने अप्रैल माह में अपना दौरा पूरा कर लिया है और इस बात का संकेत दे दिया है कि वह कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट पर विश्‍वास करेंगे। इससे भी दिग्विजय सिंह समर्थकों में बेहद उत्‍साह है। कुल मिलाकर कांग्रेस की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है अब यह किस दिशा में जायेगी, यह तो भविष्‍य ही बतायेगा। 
                                       ^मप्र की जय हो^