मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

टिकटों पर कलह

        मिशन 2013 को फतह करने के लिए भाजपा और कांग्रेस टिकटों पर कोई एक महीने से मंथन व चिंतन कर रही है। इसके बाद भी टिकटों पर कलह मची हुई है। न तो भाजपा अपनी सूची फायनल कर पा रही है और न ही कांग्रेस सूची पर कोई निर्णय कर पा रही है। दिलचस्‍प यह है कि कांग्रेस में तो टिकटों की लड़ाई दिल्‍ली तक पहुंच गई है। कांग्रेस ने 200 सीटों पर मंथन करने के बाद केंद्रीय चुनाव समिति को नाम सौंप दिये थे पर 28 अक्‍टूबर को दिल्‍ली में केंद्रीय चुनाव समिति के समक्ष फिर टिकटों में नामों को लेकर कलह सामने आई तो सोनिया गांधी खफा हो गई और उन्‍होंने एक बार फिर से सारी टिकटों पर विचार करने के लिए स्‍क्रीनिंग कमेटी को फरमान दे दिया। इस पर कांग्रेस के नेताओं के पैरों तले से जमीन खिसक गई। जिन नेताओं ने खासी मशक्‍कत करके अपने समर्थकों के नाम जुड़वाये थे अब उन्‍हें नये सिरे से जोर लगाना पड़ेगा। यही वजह है कि कांग्रेस के दिग्‍गज नेता कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को रात्रि में ही सोनिया गांधी से मिलकर सफाई देनी पड़ी। सत्‍तारूढ़ दल भाजपा में भी टिकटों को लेकर मारामारी मची हुई है। भाजपा में सर्वे, फीडबैक, समीक्षा, जमीनी हकीकत आदि का आकलन करने के बाद 230 नाम तय कर लिये थे पर 28 अक्‍टूबर से शुरू हुई चुनाव समिति की बैठक में नये सिरे से फिर 230 उम्‍मीदवारों पर बहस शुरू हुई है। उम्‍मीद की जा रही है कि 29 तारीख को इन पर मुहर लग जायेगी और सारे नामों को भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति को भेज दिये जायेंगे। सिर्फ बसपा और सपा ही ऐसे दल हैं जिन्‍होंने अपने आधे से अधिक उम्‍मीदवार घोषित कर दिये हैं। 

भाजपा फिर चर्चाओं का दौर : 
          भाजपा मिशन 2013 फतह करने के लिए उम्‍मीदवारों के चयन पर नये सिरे से 28 अक्‍टूबर को फिर मंथन भोपाल में कर रही है। अभी तक भाजपा की तिकड़ी चौहान, तोमर, मेनन ने 230 सीटों के उम्‍मीदवार एक हफ्ते की मशक्‍कत के बाद तैयार कर लिये थे अब चुनाव समिति नये सिरे से इन नामों पर विचार कर रही है। भाजपा के प्रदेश प्रभारी अनंत कुमार कह चुके हैं कि 230 सीटों पर 29 अक्‍टूबर को चुनाव समिति अपनी मुहर लगा देगी, फिर इन नामों पर केंद्रीय चुनाव समिति में विचार किया जायेगा। यह सच है कि भाजपा में भी करीब 60 से अधिक नामों पर भारी उलझनें हैं। ये नाम मंत्री और विधायक हैं जिनके टिकट कांटे जाने हैं। 100 नाम बामुश्किल सिंगल सूची में है, बाकी नामों पर मशक्‍कत चल रही है। इस बार चुनाव समिति में जातिगत समीकरण के आधार पर नेताओं का चयन नहीं हुआ है, बल्कि पार्टी नेताओं ने अपने-अपने पसंद के नेताओं को शामिल किया है। यूं तो प्रभात झा ने जो समिति बनाई थी उसमें दो-चार नामों को छोड़कर बाकी नाम यथावत हैं। यही समि‍ति अब विधानसभा टिकटों के दावेदारों पर नये सिरे से मंथन कर रही है। उम्‍मीद की जा रही है कि दीपावली तक भाजपा की सूची मार्केट में आ जायेगी। 
कांग्रेस में फिर नये सिरे से मंथन : 
            लगभग यह तय हो गया था कि कांग्रेस 28 अक्‍टूबर को 50 से 80 सीटों के बीच कभी भी एलान कर सकती है। जैसे ही केंद्रीय चुनाव समिति के समक्ष नामों की सूची पहुंची तो फिर विवाद गहरा गया। इस पर सोनिया गांधी खासी नाराज हुई। अब कांग्रेस में स्‍क्रीनिंग कमेटी नये सिरे से नामों पर विचार करेगी। दिलचस्‍प यह है कि जो नेता पुत्र टिकट के लिए बेताब हैं उनके भविष्‍य का निर्णय स्‍वयं सोनिया गांधी करेगी। यह तय हो गया है कि वर्तमान कांग्रेस विधायकों को टिकट दे दिया जाये। यहां भी 30 अक्‍टूबर अथवा 1 नवंबर को बाद ही टिकटों की घोषणा होने के आसार हैं। फिलहाल तो नामों पर खासी मशक्‍कत मची हुई है। बमुश्किल 120 सीटों पर ही सहमति बन पाई है, बाकी सीटों पर बहुत टकराव है। कांग्रेस में दिग्‍गज नेता अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए बेताब जरूर है पर वे लगातार आलाकमान की निगाह में भी आ गये हैं इस वजह से भी टिकट का फैसला लगातार उलझता जा रहा है। 
बसपा और सपा ने मैदान मारा : 
          प्रदेश में बसपा और सपा ने ही अभी तक चुनिंदा क्षेत्रों के उम्‍मीदवारों का एलान कर दिया है। हाथी और साइकिल अपने-अपने इलाकों में कदमताल भी कर रहे हैं। बसपा और सपा को फिलहाल तो कांग्रेस और भाजपा से बगावत करने वालों का भी इंतजार है ताकि वे अपने दल में उन्‍हें शामिल करके टिकट दे सकें। बसपा इस बार सरकार बनाने के मूढ़ में है। यही वजह है कि सोच-सोचकर टिकटों पर निर्णय लिया जा रहा है। सपा में टिकटों पर विचार तो हो रहा है, लेकिन वे अपने अंदाज में किले जीतने के लिए बेताब हैं। जदयू और गोंगपा ने भी अपने उम्‍मीदवार तय से कर लिये हैं। इन दोनों दलों का चुनावी गठबंधन हैं। 
बाजी किसके हाथ में : 
           टिकटों को लेकर दोनों दल गंभीर हैं। ये सच है कि अब कांग्रेस और भाजपा की शीर्षस्‍थ नेता यह मान चुके हैं कि साफ सुथरे उम्‍मीदवारों को ही टिकट दिया जाना चाहिए, तभी मैदान मारा जा सकता है। इसके लिए भाजपा और कांग्रेस खासी मशक्‍कत कर रहे हैं। इसके बाद भी नाम तय नहीं हो पा रहे हैं। सत्‍ता की चाबी किसके हाथ में रहेगी अभी यह कहना तो मुश्किल हैं, लेकिन भाजपा के किले में कदम-कदम पर कांटे ही कांटे बिछे हुए हैं। हाल यह हो गया है कि मंत्रियों के साथ-साथ विधायकों का भी क्षेत्र में खासा विरोध हो रहा है। लंबे समय बाद भाजपा के विधायक अपने क्षेत्र में विरोध का सामना कर रहे हैं। इस वजह से भाजपा विचलित है, क्‍योंकि पार्टी कार्यालय में तो विरोध हो ही रहा है पर अब विधायकों के क्षेत्र में भी कार्यकर्ताओं ने पुतला जलाना शुरू कर दिया है। अभी कांग्रेस का विरोध सड़कों पर नहीं आया है, लेकिन नाराजगी यहां भी बरकरार है। महानगरों में टिकटों को लेकर अभी से कांग्रेस नेता जहां-तहां विरोध करने लगे हैं। कुल मिलाकर मिशन 2013 फतह करना हर दल के लिए मुश्किल लग रहा है। यही वजह है कि वह टिकटों पर जोर दे रहे हैं।
                                                        ''मध्‍यप्रदेश की जय हो''

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

शिक्षा पर माफिया हावी मध्‍यप्रदेश में

        पिछड़ापन के दाग से जैसे-तैसे बाहर निकलने के लिए छटपटा रहा मध्‍यप्रदेश शिक्षा के क्षेत्र में माफिया के चंगुल में जा फंसा है। इसके फलस्‍वरूप शिक्षा व्‍यवस्‍था पूरी तरह से तार-तार हो गई है। न सिर्फ उच्‍च शिक्षा ध्‍वस्‍त हुई है, बल्कि स्‍कूली शिक्षा के तो हाल-बेहाल हैं। कुकरमुत्‍ते की तरह स्‍कूलों और कॉलेजों की बाढ़ आ गई है, जो कि शिक्षा का सौदा खुलेआम कर रहे हैं। दलालों ने अपनी पैठ शिक्षा के मंदिरों में बना ली है। यही वजह है कि शिक्षा के क्षेत्र में माफिया तेजी से पैर जमा चुका है। पिछले एक साल में तो शिक्षा का माफिया अखबारों की सुर्खियां बन गया है। 2003 से लेकर 2013 के बीच शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन के दावे तो बड़े-बड़े किये गये, लेकिन माफिया और चांदी के सिक्‍कों ने उन दावों और सपनों को चकनाचूर कर दिया, जो कि शिक्षा व्‍यवस्‍था में सुधार की तरफ एक कदम आगे बढ़ा था। इस कालखंड में ही मुन्‍ना भाईयों की मंडी मप्र में बनी। उसके बाद तो फर्जी टाईपिंग परीक्षा, ओपेन परीक्षा और बीडीएस घोटाला सामने आया है। पीएमटी के फर्जीवाड़े ने तो व्‍यावसायिक परीक्षा मंडल (व्‍यापमं) की भूमिका पर ही सवाल खड़े कर दिये। शिक्षा व्‍यवस्‍था में जो भी गड़बडिया़ सामने आई हैं, वे सब राज्‍य की पुलिस ने उजागर की है और उसमें माफिया की परते खोली हैं। 
कलंकित हुई शिक्षा :
        प्रदेश की उच्‍च शिक्षा और स्‍कूली शिक्षा बुरी तरह से कलंकित हो गई है। ऐसा कोई वर्ष नहीं गुजरता है, जब शिक्षा व्‍यवस्‍था पर दाग न लगते हों। इंजीनियरिंग और मेडीकल डिग्रियों का तो कारोबार खूब फल-फूल रहा है। मध्‍यप्रदेश में शिक्षा व्‍यवस्‍था सुधार की दृष्टि से न तो शिक्षाविदों ने गंभीरता दिखाई और न ही राजनेता सक्रिय नजर आये, बल्कि जो व्‍यवस्‍था थी वह भी लगातार तार-तार होती गई। 1990 के दशक में शिक्षा व्‍यवस्‍था निजी हाथों में सौंपे जाने को लेकर जो सि‍लसिला शुरू हुआ, तो 2013 तक आते-आते शिक्षा व्‍यवस्‍था पूरी तरह से व्‍यापारियों के हाथों में चली गई। आज प्रदेश के महानगरों और शहरों तथा कस्‍बों में भी प्राइवेट सेक्‍टर की शिक्षा व्‍यवस्‍था खूब फलफूल रही है। कॉलेज और स्‍कूलों की बाढ़ आ गई है। अब तो नये-नये विवि को मान्‍यताएं मिल रही हैं। भाजपा सरकार ने विवि खोलने की खुली आजादी देकर डिग्रियों का कारोबार को और विस्‍तार दे दिया है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्‍च शिक्षा के बार-बार कल‍ंकित होने से राजनेता तो शर्मसार हैं ही, लेकिन शिक्षाविद अभी भी नींद से जागे नहीं हैं, वह थीसिस के जरिये शिक्षा में परिवर्तन के बहुत सारे सुझाव दे रहे हैं, लेकिन उन्‍हें जमीन पर उतारने की दिशा में कोई काम नहीं किया गया है। यही वजह है कि प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्‍च शिक्षा की राह में कांटे ही कांटे बिछे हुए हैं। राज्‍य के विवि की हालत तो इस कदर बुरी हो गई हैं, कि समय पर परीक्षाएं नहीं हो रही हैं और न ही समय पर परिणाम घोषित हो रहे हैं और हर साल घोटाले पर घोटाले सामने आ रहे हैं। ऐसा कोई विवि राज्‍य में बाकी नहीं है, जिस पर दाग न लगे हों। इसके बाद भी शिक्षा में सुधार की गुंजाईश दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। 
पीएमटी फर्जीवाड़ा और उनके सौदागर : 
       मध्‍यप्रदेश में 2010-11 के बीच एक घटना ने लोगों के दिल और दिमाग को हिलाकर रख दिया था। यह घटना मेडीकल सेक्‍टर की थी। जबलपुर स्थित मेडीकल विवि में एक ऐसा गिरोह सामने आया था, जिसमें यह कहा गया था कि जो छात्रा शरीर सौंपेगी उसे डिग्री मिलेगी। इस प्रसंग के उजागर होने के बाद खूब हल्‍ला मचा, लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते इस मामले को दबा दिया गया। इसी प्रकार 2013 में मेडीकल सेक्‍टर में ही पीएमटी का फर्जीवाड़ा सामने आया है। इस घोटाले में मुन्‍ना भाईयों की मंडी बनाकर मध्‍यप्रदेश रह गया है। इस फर्जीवाड़े में व्‍यावसायिक परीक्षा मंडल के अधिकांश अफसर गले-गले तक फंसे हुए हैं और वे सब निलंबित हो गये हैं और जेल की सीक्षो के पीछे हैं। दिलचस्‍प यह है कि इस घोटाले में राजनेताओं के नाम भी शामिल होने के संकेत मिले हैं, लेकिन अभी तक एसटीएफ ने ऐसे कोई तथ्‍य उजागर नहीं किए हैं। व्‍यापमं के जो अधिकारी पीएमटी फर्जीवाड़े में शामिल थे, उनमें नितिन महिन्‍द्रा मुख्‍य विश्‍लेषक, सीके मिश्रा परीक्षा प्रभारी, अजय सेन सीनियर विश्‍लेषक और व्‍यापमं के नियंत्रक पंकज त्रिवेदी शामिल हैं। इस पीएमटी फर्जीवाड़े को बाहर से जो गिरोह ऑपरेट कर रहा था उसमें फर्जीवाड़े का मास्‍टर माइंड डॉ0 सागर था और इसका सरगना संजीव शिल्‍पकार थे। फिलहाल तो 84 पीएमटी की सीटें निरस्‍त कर दी हैं। इस घोटाले ने प्रदेश की पूरी शिक्षा व्‍यवस्‍था को आईना दिखा दिया है। इसी प्रकार डीमेट घोटाले भी विवादों के घेरे में हैं। बरकतउल्‍ला विवि का बीडीएस घोटाला भी सुर्खियों में छाया हुआ है। इस मामले की भी जांच गहराई से हो रही है। 
अन्‍य फर्जीवाड़े : 
       पीएमटी फर्जीवाड़े के अलावा अन्‍य घोटाले भी समय-समय पर सामने आये हैं। हाल ही में ओपन परीक्षा का फर्जी मार्कशीट घोटाला सामने आया है। यह मामला 18 अक्‍टूबर को उजागर हुआ और राज्‍य ओपन से जुड़े अधिकारियों को गिरफ्तार भी किया गया है। राज्‍य ओपन संचालक और परीक्षा नियंत्रक को निलंबित किया जा चुका है। इसी प्रकार  टाईपिंग परीक्षा घोटाला भी सामने आ चुका है। 
        दुखद पहलू यह है कि मप्र में शिक्षा व्‍यवस्‍था धीरे-धीरे माफिया के चक्रव्‍यूह में जाकर फंस गई है। इसे बाहर निकालने के लिए कई स्‍तर पर प्रयास किये जाने चाहिए, तब कहीं जाकर जो शिक्षा व्‍यवस्‍था पर कलंक लग गया है अन्‍यथा धीरे-धीरे प्रदेश की जो पीढ़ी तैयार हो रही है उसका भविष्‍य चौपट होना तय है। 
                                 ''मध्‍यप्रदेश की जय हो''